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जयपुर अतरौली घराने की प्रतिनिधि गायिका विदुषी अश्विनी भिडे देशपांडे

शास्त्रीय संगीत में सुरों की सच्चाई का सत्य हरेक कलाकार जानता है… यह ऐसा सच है जिसके आगे-पीछे दूर दूर तक कोई नहीं, याने सुर सच्चे लगे है तो लगे है और कोई तर्क या कारण किंतु-परंतु नहीं चलता। यह सत्य जैसा ही है जो शाश्वत है अकाट्य है दृढ़ है अविचल है। शास्त्रीय संगीत में पैमाना एक ही है सुरों की सच्चाई।

आज के इस तेज गति के दौर में शास्त्रीय संगीत की गंभीरता को उसी गति से जानने वाले और मानने वालों की संख्या बहुतायत में है और यही कारण है कि शास्त्रीय संगीत अब आनंद देने, आध्यात्मिक विकास में साथ देने के साथ दिन प्रतिदिन की दिनचर्या में भी साथ दे रहा है… सुख को थामने की चाह में कष्ट और दु:ख के पहाड पर लगातार चढ़ने उतरने वाले लोगो को अमृत जैसी छाया देने वाले शास्त्रीय संगीत की दुनिया में विदुषी अश्विनी भिड़े देशपांडे का नाम सुकुनभरी गायिका और सुरों की सच्चाई के लिए ही लिया जाता है।

सुरों की एक ही शर्त है कि आप मुझे सही तरह से लगाए वरना न लगाए… अश्विनी भिड़े देशपांडे भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक ऐसा दैदिप्यमान सितारा है जिन्होंने सदा शुद्धता और पवित्रता के साथ शास्त्रीय संगीत के प्रस्तुतिकरण को बढ़ावा दिया। वैज्ञानिक दृष्टिकोण और शास्त्रीयता के साथ आगे बढ़ने में तर्को की कसौटियां बहुत आती है परंतु अश्विनी ताई ने हर बार इसे स्वीकार किया है कि संगीत परमब्रह्म है और इस शाश्वत सत्य को लगातार बरकरार रखने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका भी रही है। किसी भी कलाकार की खूबियां जानने के लिए केवल मंचीय प्रस्तुति सुनना या देखना काफी नहीं है बल्कि संगीत में ही रचे बसे उनके व्यक्तित्व को भी जानना जरुरी होता है। अश्विनी ताई न केवल बेहतरीन कलाकार है बल्कि वे बेहतरीन व्यक्तित्व की धनी भी है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत का माहौल अश्विनी ताई के घर में बचपन से ही मिला… दादी दिलरुबा बजाती थी वही पिता वायलिन, हारमोनियम व तबला बजाते थे। अश्विनी ताई की माँ स्वयं जयपुर अतरौली घराने की गायिका थी। यह बिरला संयोग ही था कि अश्विनी ताई भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर मुंबई में पूर्णकालिक शोध में लगी हुई थी इसके बाद उनका आकर्षण गायन की तरफ हुआ। वैसे तो वे बचपन से ही गाना गा ही रही थी परंतु संगीत में ही आगे बढ़ना है यह निर्णय काफी बाद में लिया। आकाशवाणी की प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में नंबर आने के बाद से अश्विनी ताई ने सार्वजनिक रुप से कार्यक्रम देना भी आरंभ किए ।

परंपराओ का शिद्दत के साथ पालन

अश्विनी ताई परंपराओं से कभी भी समझौता नहीं करती और यही बात रागों के प्रस्तुतिकरण के दौरान भी नजर आती है जब वे मंच पर होती है तब सही मायने में शास्त्रीयता हर सुर में नजर आती है। देश विदेश में अपने गायन से भारतीय शास्त्रीय संगीत का परचम फैलाने वाली अश्विनी ताई ने अपनी बंदिशो को भी आकार दिया और उन्हें पुस्तक रुप में प्रकाशित भी किया जिन्हें पसंद भी किया गया। संगीत नाटक अवार्ड से लेकर राष्ट्रीय कुमार गंधर्व सम्मान प्राप्त अश्विनी ताई जहां एक ओर बायोकेमेस्ट्री में डॉक्टरेट वही दुसरी और गायकी के क्षेत्र में उन्होंने जो मुकाम हासिल किया है वह बिरले गायको को ही मिल पाता है। पं. संजीव अभ्यंकर के साथ जसरंगी जुगलबंदी कार्यक्रम हो या फिर अश्विनी ताई का स्वयं का स्वतंत्र कार्यक्रम हो अश्विनी भिड़े देशपांडे याने सुरों की सच्चाई… असल गायकी और परंपराओं का निर्वहन। ख्याल गायकी हो या फिर ठुमरी,कजरी हो अश्विनी ताई का सभी पर समान रुप से अधिकार है। अश्विनी जी ने अपना वृहद शिष्यवर्ग भी तैयार किया है जिन्हें बड़े ही अनुशासनबद्ध तरीके से वे प्रशिक्षण भी देती है उनके साथ स्वयं भी प्रयोग करती है और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी करती है।

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