नादस्वरम से सैक्सोफोन चक्रवर्ती का सफर शायद एकबारगी आसान लग सकता है परन्तु पद्मश्री कादरी गोपालनाथ के निधन के पश्चात् उनकी सांगीतिक यात्रा पर नजर डालें तो उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया था। प्रसिद्ध सैक्सोफोन वादक पद्मश्री कादरी गोपालनाथ का कल 69 वर्ष की आयु में मैंगलोर में निधन हो गया।
सैक्सोफोन पर कर्नाटक संगीत की प्रस्तुति देना अपने आप में कठिन कार्य था यह कार्य बजाने से ज्यादा कर्नाटक संगीत की परंपरा को मानने वाले लोगो के बीच में अपनी बात मनवाना था। यह ठीक वैसे ही बात थी कि ठेठ ब्राह्मण परिवार में युवा बेटा अमेरिका से विदेशी बहू लेकर घर आया हो। सुनने में अजीब लग सकता है परंतु कादरी गोपालनाथ ने परंपराओं से अलग पर परंपरा के साथ रहकर कार्य करने का जो साहस किया था इसमें उनकी मेहनत और संगीत के प्रति अटूट विश्वास ही काम आया जब कर्नाटक संगीत के दिग्गजों सहित आम जनता ने भी उनके कार्यों को स्वीकार किया और उन्हें मान दिया।
20 वर्ष की लगातार मेहनत
पिता तनयप्पा नादस्वरम वादक थे जिसे मंगल वाद्य कहा जाता है कादरी गोपालनाथ ने पहले नादस्वरम बजाया पर मैसूर में सेक्सोफोन की दिलकश आवाज ने उनके मन पर अमिट छाप छोड़ी और उनका दिल इस विदेशी वाद्य की ओर खींचा चला गया। वे लगातार जुटे रहे इस विदेशी वाद्य को भारतीय संस्कृति में ढालने के लिए प्रयत्न करने लगे। उन्होंने कर्नाटक संगीत की बारिकियों को इस वाद्य में से निकालने के लिए प्रयत्न किए कुछ बदलाव किए और सैक्सोफोन की मधुर स्वरलहरियों में कर्नाटक संगीत सुन पहले पहल लोग आश्चर्य करते थे। परंतु प्रतिभाशाली कादरी गोपालनाथ जी लगातार अपने कदम बढ़ाते गए फिर कर्नाटक संगीत के गुरु टी.वी. गोपालकृष्णन ने कादरी गोपालनाथ जी की प्रतिभा को दुनिया के सामने लाया।
मुंबई की वह जाज कंसर्ट
अस्सी के दशक में मुंबई जाज कंसर्ट में अमेरिका के जाज संगीत के ज्ञाता जॉन हेंडी प्रस्तुति दे रहे थे जब उन्हें पता लगा कि कादरी गोपालनाथ भी वहां मौजूद है तब उन्होंने कादरी जी को मंच पर आकर साथ में प्रस्तुति देने के लिए कहा। जब संगीत की दो अलग अलग परंपराओं के मिश्रण से स्वर निकले तब दर्शको को इन रसधाराओं ने भावविभोर कर दिया। इसके बाद कादरी जी ने कई विदेशी संगीतकारों के साथ जुगलबंदी की और न केवल भारत के विभिन्न शहरों में बल्कि युरोप, अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में प्रस्तुतियां दी। जाज बांसुरी वादक जेम्स न्यूटन के साथ उन्होंने सदर्न ब्रदर्स नामक अल्बम प्रस्तुत किया था जिसे खूब पसंद किया गया।
जब रहमान के साथ काम किया
दक्षिण के फिल्म निर्देशक के. बालचंद्रन ने तमिल फिल्म ड्यूट में कादरी जी को आमंत्रित किया। इस फिल्म का संगीत ए.आर.रहमान दे रहे थे और कादरी जी के अनुसार जब रहमान जी के सामने उन्होंने लगभग 30 अलग अलग रागों की प्रस्तुति दी परंतु उन्हें कुछ भी पसंद नहीं आ रहा था फिर मैंने राग कल्याणवसंतम सुनाया तब रहमान उछल पड़े यहीं तो मुझे चाहिए था। इस फिल्म के बाद कादरी जी को बहुत प्रसिद्धि मिली यहां तक की वे बतौर सेलिब्रिटी रुप में पहचाने जाने लगे।
मराठी अभंग से लेकर शुद्ध कर्नाटकी संगीत
कादरी गोपालनाथ जी ने आरंभ से ही प्रयोग करने में कोई भी कोताही नहीं बरती और जब कैसेट्स का जमाना था तब भी उन्होंने मराठी अंभगों को लेकर कैसेट बाजार में लाई इतना ही नहीं कर्नाटकी शुद्ध शास्त्रीय संगीत की कैसेट्स के अलावा भजनों की रेकार्डिंग्स भी खूब की और उसे लोगो ने अच्छा प्रतिसाद भी दिया।
कई सम्मान मिले
कहते है कि आप कड़ी मेहनत करते जाओ सम्मान आपकी राह में आसानी से आते रहते है। कादरी गोपालनाथ को संगीत नाटक अकादमी और पद्मश्री जैसे सम्मानों के अलावा कांची कामकोटी पीठ, श्रृंगेरी शारदा पीठ से भी सम्मान प्राप्त हुए और सैक्सोफोन चक्रवर्ती, सैक्सोफोन सम्राट, नाद कलारत्न, नाद कलानिधि के अलावा तमिलनाडू स्टेट अवार्ड जैसे कई सम्मान प्राप्त हुए है इतना ही नहीं बैंगलोर यूनिवर्सिटी ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि भी प्रदान की थी। बीबीसी ने उन्हें रॉयल अल्बर्ट हॉल में प्रस्तुति देने के लिए भी बुलाया था।
फिल्म संगीत भी उन्हें बहुत सुकून देता था
कादरी गोपालनाथ को फिल्म संगीत भी बहुत सुकून देता था और वे युवाओं के बीच जब भी जाते वे फिल्म संगीत की बात जरुर करते और बजाते भी खूब थे। उनके पुत्र मणिकांत कादरी भी दक्षिण के जाने माने फिल्म संगीत कंपोजर है।
संगीत की दुनिया ने दी श्रद्धांजलि
कादरी जी के निधन पर ख्यात संगीतज्ञों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है।
- मेरी संवेदनाएं कादरी गोपालनाथ जी के परिवार के साथ है। – पंडित जसराज
- कादरी गोपालनाथ बेहतरीन संगीतज्ञ थे और उन्होंने अपने संगीत से कई लोगों को प्रभावित किया। उनके अचानक निधन से संगीत की दुनिया में खालीपन महसूस होगा। – डॉ.एल.सुब्रमणियम
- भारतीय संगीत में सेक्सोफोन को लाने वाले सेक्सफोन सम्राट कादरी गोपालनाथ जी का निधन मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। मैंने उनके साथ वर्ष 1995 से जुगलबंदी बजाना आरंभ किया था और हमारी जुगलबंदी को दुनियाभर में काफी प्रसिद्धि मिली थी। – पं.रोनू मुजुमदार