शास्त्र को संदर्भ के रुप में ही देखने की आदत हमें डाली गई है पता नहीं क्या कारण है पर शास्त्र याने बड़ी पोथियों को कपड़ो में लपेट कर घर की सबसे महफूज जगह पर रख देना और जब जरुरत हो तभी उसकी धूल को हटाकर थोडी मात्रा में ज्ञान लेना और उसका उपयोग करना।
शास्त्रीय संगीत की स्थिति मध्यप्रदेश में ठीक वैसी ही है राज्य सरकार अपनी ओर से पुरस्कारों की घोषणा कर देती है और आयोजन कर देती है। कलाकार भी आते है कार्यक्रम देते है मीडिया में बाते होती है और बातों के अलावा कुछ नहीं होता।
शास्त्रीय संगीत की विशेषताओं को आम जनता के सामने लाने के लिए प्रयत्न शून्य है क्योंकि राज्य सरकार कलाकारों के लिए मंच प्रदान जरुर करती है पर केवल राजधानी के कलाकारों के लिए। हमें जब अपने संगीत संस्कृति और संस्कारों की बात करनी हो तब शास्त्रीय संगीत का नाम लेकर हम छाती ठोकते है पर जब इसके संवर्धन की बात आती है तब कोई बात नहीं करता।
कागजों पर शास्त्रीय संगीत को राज्य सरकार आगे बढ़ाने के लिए नित नए कार्यक्रम आयोजित करती है परंतु जिस प्रकार से राजधानी में उस्ताद अलाउद्दीन खां अकादमी से लेकर भारत भवन में शास्त्रीय संगीत को लेकर सोच है उस पर अब गंभीरता के साथ चिंतन होना चाहिए।
शास्त्रीय संगीत को जकड़न से मुक्त करना होगा और खुले आकाश के बीच नई सोच और नए विचारों के सामने रखना होगा। बात केवल शास्त्रीय संगीत की नहीं है बल्कि साहित्य से लेकर प्रदेश की लोककलाओं की बात भी है। हमनें कला संस्कृति के नाम पर इन्हें शास्त्रीयता और फिर ये कुछ अलग है करके इसे मुख्यधारा से अलग कर दिया है जिसका परिणाम यह है कि आज शास्त्रीय संगीत के शासकीय आयोजनों में कलाकार जब प्रस्तुति देता है तब उसके परिजन और रिश्तेदार ही दर्शक होते है और आयोजको को दर्शक जुगाड़ने के लिए प्रयत्न करने पड़ते है।
शास्त्रीय संगीत को अछूत क्यों बनाया जा रहा है यह सबसे बड़ा प्रश्न है। इसके पीछे सरकारी सोच ऐसी क्यों है? दरअसल कला संस्कृति को आगे बढ़ाने के दौरान केवल कलाओं और कलाकारों के लिए आयोजन कैसे किए जाए इस पर विचार होता है और आयोजन के दायरे से बाहर निकल कर इसकी लोकप्रियता को आम जनता के बीच कैसे फैलाई जाए इस पर बात नहीं होती।
आदिवासी कलाओं को लेकर कई समूह सक्रिय है पर उनकी सक्रियता आम जनता के सामने कम ही है। ऐसा क्यों नहीं हो सकता की प्रदेश की लोक कलाओं को प्रदेश के सरकारी निजी स्कूलों और कॉलेजो में प्रदर्शन करने के लिए भेजा जाए। जिस प्रकार से राष्ट्रीय स्तर पर स्पिक मैके द्वारा स्कूली विद्यार्थियों के लिए शास्त्रीय संगीत, नृत्य व अन्य कलाओं को लेकर प्रयास किए जा रहे है क्या हम राज्य स्तर पर अपने ही शासकीय विद्यालयों और कॉलेजो से लेकर अन्य सरकारी संगठनो और विभागों में अपनी लोक कलाओं को बढ़ावा नहीं दे सकते। सरकार ने हैप्पीनेस विभाग बनाया है क्या उसमें संगीत और कलाओं का समावेश नहीं किया जा सकता क्योंकि संगीत असीमित आनंद देता है।
आम जनता को शास्त्रीय संगीत किस प्रकार से पसंद आएगा इस पर भी कलाकारों को विचार करना जरुरी है पर कलाकार बेचारा किस प्रकार से मंच मिले इस जद्दोजहद में लगा रहता है और अगर वह राजधानी का कलाकार नहीं है तब उसे अतिरिक्त मेहनत करना पड़ती है शासकीय सूची में अपने आप को लाने के लिए और फिर कार्यक्रम प्राप्त करने के लिए।
शास्त्रीय संगीत हो या फिर लोक नृत्य या साहित्य क्यों न हो इन्हें इनकी शास्त्रीयता के साथ आम दर्शको के साथ कैसे जोड़ा जाए इस पर ध्यान देने की जरुरत है। आज प्रदेश भर के शासकीय कॉलेजो में शास्त्रीय संगीत के शिक्षक है जो प्रतिभाशाली है इतना ही नहीं कई वृद्ध कलाकार भी है जो संगीत और कलाओं को आम जनता के बीच सहजता के साथ कैसे लाया जाए इसके लिए प्रयत्नशील है परंतु सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। वृद्ध कलाकारों को पेंशन देना या किसी बड़े कलाकार की स्मृति में एक कार्यक्रम की घोषणा या पुरस्कार की घोषणा करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि सबसे पहले संगीत और कलाओं के लिए जितनी भी शासकीय संस्थाए काम कर रही है उन्हें ठेकेदारों से मुक्त करना जरुरी है। ये ठेकेदार वर्षों से यहां जमे रहते है और अपने प्रिय कलाकारों को ही कार्यक्रम प्रस्तुति करने का मौका देते है।
आज भी राज्य के दूरस्थ शहरों और छोटे कस्बों में एक से बढ़कर एक कलाकार है जो सीमित दायरे में अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे है उन्हें इस दायरे से बाहर लाना होगा और प्रदेश के पर्यटन, हैप्पीनेस से लेकर अन्य कई विभागों को संगीत और लोक कलाओं से जोड़ना होगा इससे न केवल विभागों की कार्यकुशलता बढेगी बल्कि नए कलाकारों को आगे आने का मौका भी मिलेगा। कॉलेजो में बड़े स्तरों पर शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत को बढ़ावा देने के लिए सेमिनार आयोजित करने तक सीमित नहीं रहना होगा बल्कि बड़े कलाकारों के साथ संवाद, कला प्रदर्शन और प्रत्येक निजी स्कूल और कॉलेज में भी प्रदेश की कलाओं का बच्चों द्वारा प्रदर्शन किस प्रकार हो इसकी नीति पर भी विचार करना होगा।
शास्त्रीय संगीत सभी के लिए है और सहज है इसे और इसकी विशेषताओं को खुलकर आम जनता के सामने लाना होगा और निश्चित रुप से इसके लिए राज्य शासन के अलावा कलाकारों को भी अपनी मानसिकता में बदलाव करना होगा।