भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में ‘कथक नृत्य’ अत्यंत प्राचीन एवं सौन्दर्यपरक है। सभी शास्त्रीय नृत्यों की भाँति यह भी मंदिरों की देन है। मंदिरों से निकल कर दरबार एवं वर्तमान में जनमंच तक पहुंचने की इसकी यात्रा अनंत एवं आकर्षक है। कथक नृत्य के इसी मनोहारी स्वरुप को अपनी मोहक गतियों, लड़ी लयकारी, चक्करदार टुकड़े, भ्रामरी, लास्य एवं तीव्रता से प्रस्तुत किया उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग के राष्ट्रीय कथक संस्थान, लखनऊ के युवा कलाकारों ने।
लखनऊ के राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में २८ अगस्त को सम्पन्न कथक संध्या “झंकार” में प्रसिद्ध कथक गुरु श्री राजेंद्र गंगानी के निर्देशन में संस्थान के युवा कलाकार हुमा साहू, उपासना श्रीवास्तव, आरोहिणी, मोनिका, सिमरन, शैलजा एवं जयश्री ने कई प्रस्तुतियां दी।
सर्वमंगल से ओत-प्रोत नृत्य की प्रथम प्रस्तुति में १४ मात्रा में निबद्ध अत्यंत प्रचलित एवं विशिष्ट ताल धमार का प्रदर्शन किया गया। ताल की गति, लयकारी एवं मौलिकता इस प्रस्तुति की विशेषता थी। द्वितीय चरण में श्रृंगार रस पर आधारित ठुमरी ‘बांके पिया से मोरी लड़ गई नजरिया’ द्वारा कृष्ण व राधा के प्रेम का मनमोहक वर्णन किया गया। एक तरफ पिया से मिलाने की व्याकुलता तथा दूसरी ओर नयना मिलने पर लज्जा के भाव अभिव्यंजन को दर्शकों ने बहुत सराहा।
इसके पश्यात गीत की अत्यंत प्रचलित शैली सरगम की मनमोहक प्रस्तुति हुई जिसमें सरगम के बोलों के साथ साथ पारम्परिक बंदिश, घूंघट की चाल एवं तत्कार सम्मिलित थी।
इस कार्यक्रम की परिकल्पना एवं अवधारणा की थी राष्ट्रीय कथक संस्थान की सचिव श्रीमती सरिता श्रीवास्तव ने।