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60 सालों के इतिहास में पहली बार संस्थान ने निकाला दिया

अमूमन ऐसा नहीं होता है कि कोई नृत्य संस्थान किसी को बेदखल कर दे लेकिन नृत्य गुरु कुमुदिनी लाखिया के हस्ताक्षर वाला ई-मेल जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, हड़कंप-सा मच गया। किसी ने इसे भाषागत राजनीति समझा, किसी ने गुटबाजी का परिणाम बताया लेकिन जो भी हो उससे सच्चाई तो बदल नहीं सकती और सच्चाई यह है कि अहमदाबाद स्थित कदंब सेंटर फ़ॉर डांस संस्थान ने अपने पाँच विद्यार्थियों को संस्थान से निष्कासित कर दिया।

बीते बुधवार ट्रस्टियों की बैठक में यह निर्णय लिया गया और दो-तीन दिनों में ही इस निर्णय ने खलबली मचा दी। ऐसा तो हो नहीं सकता कि यह निर्णय आनन-फ़ानन में लिया गया हो। ट्रस्टियों ने सर्वसम्मति से छात्रों को निष्कासित करने का निर्णय लिया और उसके पीछे की वजह यह बताई जा रही है कि वे छात्र संस्थान के भीतर विद्रोह की स्थिति पैदा करने के लिए भरसक कोशिश कर रहे थे।

कुमुदिनी लाखिया एवं संजुक्ता सिन्हा | चित्र: संजुक्ता की फेसबुक वॉल से

पत्र में कहा गया है कि संस्थान संजुक्ता सिन्हा, मिहिका मुखर्जी, कृतिका घाणेकर, विधी शाह और पंकज शाह में से किसी की भी वफ़ादारी, विश्वसनीयता और जिम्मेदारी की कोई गारंटी नहीं लेता है। गौरतलब है कि कुमुदिनी लाखिया (अपने छात्रों के लिए कुमिबेन) अहमदाबाद, गुजरात में स्थित एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कथक नर्तक और कोरियोग्राफर हैं, जहाँ उन्होंने कदंब स्कूल ऑफ़ डांस एंड म्यूज़िक की स्थापना की। कथक नृत्य में अग्रणी, लाखिया को 1960 के दशक के शुरुआती दौर में कथक को एकल से सामूहिक प्रस्तुति के रूप में रखने का श्रेय दिया जाता है। उन्हें 2010 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। यह भी गौर करने वाली बात है कि स्वयं कुमुदिनी लाखिया ने कभी संजुक्ता के लिए कहा था कि – “जब वह मेरे पास आई थी तो उसने कहा था मैंने कई वर्षों तक सीखा है लेकिन मैं एक नर्तकी बनना चाहती हूँ। मेरे साथ प्रशिक्षण में उसने शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह से अपनी ताकत की खोज पर ध्यान केंद्रित किया। आज वह सबसे प्रतिभाशाली और बहुमुखी नर्तकी के रूप में विकसित हुई है।” लेकिन यही संजुक्ता आज कुमुदिनी लाखिया की आँख की किरकिरी साबित हुई। पारुल शाह ने तो इसे रेखांकित भी किया कि एक सुंदर रिश्ता खत्म हो गया।

कदम्ब के अध्यक्ष शिशिर हट्टंगड़ी ने कहा कि कुमिबेन ने हमेशा अपने छात्रों को उड़ान भरने के लिए प्रोत्साहित किया है और कदम्ब ने पिछले 60 वर्षों में कभी किसी को जाने के लिए नहीं कहा। जो भी लोग गए हैं, वे उनके आशीर्वाद और शुभकामनाओं के साथ गए। मैं इस तथ्य के बारे में बहुत गर्व महसूस नहीं करता कि जब यह हुआ मैं अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा था और वह भी, संस्थान के अस्तित्व के बाद पहली बार। लेकिन मेरी निष्ठा मेरी सास कुमीबन के प्रति थी, और उनके द्वारा बनाई गई एक संस्था की गरिमा की रक्षा करते हुए, हमने यह निर्णय लिया। यह हमारे लिए बहुत गर्व का क्षण नहीं है, लेकिन मूल्यों की विरासत को जारी रखने के लिए कुमीबेन ने कदम्ब में जो लोकाचार किया था, उसके प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है। कुमीबन के लिए यह एक कठोर कदम था। हम कदम्ब में सभी को शुभकामनाएँ देते हैं, और इसमें वे सभी शामिल हैं जिन्होंने उन्हें चोट पहुँचाई है।

प्रतिक्रियाएं

लोगों के पास कदंब संस्थान की ओर से ये संदेश गए। अनीता रत्नम को कदंब की ओर से कुमुदिनी लाखिया के हस्ताक्षर वाला पत्र मिला जिसे उन्होंने अपने मीडिया अकाउंट पर साझा किया। ताप्ती चौधरी, गौरी दिवाकर इस खबर से सन्न रह गए। जबकि गीता चंद्रन ने इस कदम के लिए कुमिबेन को सलाम किया। सुदर्शन चक्रवर्ती ने महान् लोग हमेशा अडिग रहते हैं, लहरें आती हैं-जाती हैं। सत्यजित सी.पी. ने इस खबर के साथ अधिक स्पष्टता की माँग की। इंदिरा गणेश के लिए यह त्रासद खबर थी। जुजु हट्टंगडी ने कहा कि कदंब के 60 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी को निकाल दिया गया हो। उन्होंने इसे बेबाक कदम बताया।

इस ख़बर के बाद सोशल मीडिया पर चर्चा का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। वरिष्ठ नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली कहती हैं कि वे इस ख़बर को पढ़कर स्तब्ध हो गईं। हालाँकि वे कहती है गुरू अधिक बेहतर जानते होंगे कि क्या हुआ। वहीं डॉ. वसंत किरण ने कहा कि सही प्रयोग करने और अपव्यय करने में जो महीन रेखा होती है यह उसका हनन है। संस्थान हमेशा निजी इकाई से ऊपर होता है। लगभग इसी तरह का वक्तव्य पियूष राज का भी था कि कोई भी व्यक्ति, संस्थान से ऊपर नहीं होता है। अंजली पाटिल ने कहा कि संस्थान की ओर से प्राप्त अवसरों को अपने लिए चुरा लेना सही नहीं है। उन्होंने इसे ऐसे लोगों के लिए सबक कहा है जो इस तरह के पैंतरे आज़माते हैं। चित्रा विश्वनाथन् को लगा कि हमेशा गुरु की पीठ में छुरा क्यों घोंपा जाता है?

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