सांगीतिक समझ के साथ संगीत सुनना किसी कलाकार या संगीत के जानकार ही कर सकते है पर क्या कारण है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत से लेकर अन्य किसी भी प्रकार के संगीत का प्रभाव व्यक्ति के अवचेतन मन तक पहुंचात है और मन को जैसे अमृत तत्व की छूअन महसूस होती है।
संगीत परमब्रम्ह है ऐसा कहा जाता है पर क्या भारतीय शास्त्रीय संगीत आम जनता को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पसंद आता है या आता रहेगा। यह प्रश्न अक्सर बड़े कलाकारों को कंसर्ट से पहले मीडिया पूछता है और बड़े कलाकार भी बड़े ही धैर्य के साथ इसका उत्तर देते है कि जब ब्रह्म है तब यह अविनाशी है और जो अविनाशी है वह सतत प्रवाहमान है। अविनाशी सुरों की कल्पना ही कितनी सुंदर है मधुर है ऐसा स्वर जो नित बजता रहता हो और जो मन की तारों को झंकृत करने का माद्दा रखता हो।
भारतीय शास्त्रीय संगीत को लेकर पूर्वाग्रह बहुत पाला जाता है और उस पूर्वाग्रह को मन में रखकर ही अक्सर कई दर्शक किसी कंसर्ट का हिस्सा बनते है। उन्हें भीतर से किसी भी प्रकार की रुचि नहीं रहती पर जब सुर व्यक्ति के अवचेतन मन पर अपना असर डालते है और जब व्यक्ति अपना होकर भी अपना नहीं रहता है तब जाकर उसे इस बात का एहसास होता है कि उसके मन पर संगीत ने अपना मधुर असर डाल दिया है।
मन और संगीत का अटूट बंधन है जैसे मन के भीतर प्रीरिकार्डेड है सबकुछ जैसे संगीत के सुर और मन के विभिन्न तहों के बीच लुकाछिपी का खेल वर्षों से चला आ रहा हो… सुर मन के भीतर तहों तक जाते है वहां आनंद फैलाते है और अपनी यादों को वहां छोड़ वापस आ जाते है और फिर नए सुर नई धुन वहां पहुंच जाती है और मन के आनंद को द्विगुणित कर देते है। यह आनंद उस अविनाशी का प्रदान किया है जिसने मन भी दिया है और मन को आनंदित करने के लिए संगीत भी दिया है।
संगीत मधुरता का परिचायक है पर साथ ही मन का एक ऐसा साथी है जो हरदम साथ निभाने के लिए लालायित रहता है। संगीत मन की अवस्था के अनुरुप अपने आप को ढालने का माद्दा रखता है इस कारण संगीत सभी परिस्थितियों और घटनाओं के अनुरुप अपने आप को ढाल लेता है। संगीत मन की अवस्थाओं और स्थिति को समझता है और सुरों को उसी अनुसार बुनने और गुनने का कार्य करता है जिसका असर सीधे से मन पर पड़ता ही है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत को लेकर जितने भी लोगो को यह पूर्वाग्रह है कि यह तेज नहीं है इसमें बीट्स का मजा नहीं है या यह बहुत ही धीमा है उनके लिए यह साफ संदेश है कि यह भारतीय शास्त्रीय संगीत को सर्वप्रथम विदेश में लोकप्रिय बनाने वाले उस्ताद अली अकबर खां और पं.रविशंकर के भारतीय शिष्यों से ज्यादा विदेशी शिष्य है। आज भी विदेशों में भारतीय शास्त्रीय संगीत को लेकर उत्साहजनक माहौल है क्योंकि यह मन का संगीत है और व्यक्ति को अपने आप से जोड़ने वाला संगीत है ऐसा माध्यम है जो व्यक्ति को बाहरी माहौल से भीतर की ओर ले जाते है उस ब्रह्म की ओर जिसके हम स्वयं अंश है।
अध्यात्म और संगीत का भी बड़ा गहरा रिश्ता है चाहे ध्यान लगाना हो या योग करना हो भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ ही यह हो पाता है क्योंकि भारतीय शास्त्रीय संगीत गहराई लिए हुए है इसमें सुरों की शुद्धता,समय का मान और रागदारी की शास्त्रीयता है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत और पश्चिमी संगीत को लेकर जो भी तुलना करते है उन्हें यह बात जान लेना चाहिए की संगीत एक है सुर एक जैसे ही है यह हमारे दिमाग की उपज है कि ये संगीत अच्छा या ये संगीत बुरा। कई बार कोई लोक गीत ही आपको भीतर तक छू जाता है तो कई बार कोई फिल्मी गीत या गजल… पर सभी में संगीत है और यही संगीत की विशेषता है कि वह सभी को भीतर तक भिगो देने की क्षमता रखता है।