
गुरू बिन ज्ञान – कुछ ठोस कदम उठाने की सख्त आवश्यकता
‘गुरू बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ’… बैजू बावरा के इस गीत को गुनगुनाते हुए लगा कि आज के दौर में यह कितना सटीक है, है
‘गुरू बिन ज्ञान कहाँ से पाऊँ’… बैजू बावरा के इस गीत को गुनगुनाते हुए लगा कि आज के दौर में यह कितना सटीक है, है
पाषाण युग में मनुष्य ने बोलना नहीं सीखा था.. यह तो सभी जानते हैं। तब गुफाओं पर चित्र उकेर कर वह अपनी बात कहता था..
‘मुरली की धुन सुन आई राधे’….यह उस कवित्त के बोल है, जिसे कथक सीखने के प्रारंभिक वर्षों में सीखा था…कवित्त अर्थात् कविता के बोलों को
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