वह घड़ेनुमा वाद्य ही तो है जैसे घर में हम कोई मटका बजाते है बिल्कुल वैसा पर विक्कू विनायक एवं उनके परिवार के हाथ जैसे ही घटम पर चलते है तब ऐसा लगता है मानो सही मायने में ताल उनकी उंगलियों पर नाच रहा हो। थ्री जी याने तीन पीढ़ियों ने मिलकर ताल का ऐसा जाल बुना की आम दर्शक क्या और खास क्या सभी मंत्रमुग्ध होकर बस उनकी प्रस्तुति में खो से गए। शिव तांडव को तिश्र जाती की सात मात्रा में जैसे ही प्रस्तुति आरंभ हुई दर्शक पहले मिनट से प्रस्तुति में शामिल हो गए।
विक्कू 3 जी में विक्कू विनायक घटम बजाते है पुत्र वी सेल्वगणेश और पौत्र स्वामीनाथन सेल्वगणेश खंजीरा बजाते है। वी उमाशंकर ने घटम पर और ए.गणेश ने मोरचंग पर साथ दिया। प्रस्तुतियां इतनी दमदार थी कि दर्शकों को भी उन्होंने अपने वादन में शामिल कर लिया। उम्रदराज विक्कू अपने कुनबे के साथ प्रस्तुति देते समय बेहद खुश नजर आ रहे थे। घटम जैसे वाद्य को वैश्विक लोकप्रियता दिलवाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है। साडे सात मात्रा की प्रस्तुति के बाद आदिताल से कार्यक्रम का समापन किया। प्रस्तुतियों के दौरान सभी कलाकारों का आपसी संयोजन देखते ही बन रहा था। संपूर्ण प्रस्तुति के दौरान दर्शक बराबर कार्यक्रम में बने रहे।
इस दमदार प्रस्तुति के पश्चात मंच संभाला पुणे के ध्रुपद गायक उदय भवालकर ने। ध्रुपद अपने आप में धीर गंभीर गायन समझा जाता है और एक ऐसी महफिल में जहां पर पहले ताल पक्ष की दमदार प्रस्तुति हो चुकी हो अपने कार्यक्रम की भी उतनी ही बेहतरीन ढंग से प्रस्तुति देना चुनौती होती है। राग छायानट में आपने धमार ताल में निबद्ध बंदिश लचकत आवे हो गौरी की प्रस्तुति दी। उदय जी की आलापी बेहतरीन थी और राग के विभिन्न आयामों को आपने सहजता के प्रस्तुत किया और खासतौर पर खरजÞ की गायकी आपने सुंदर तरीके से प्रस्तुत की। राग छायानट को उसके संपूर्ण माधूर्य के साथ आपने प्रस्तुत किया। गायन में गंभीरता और सुरों की सच्चाई हो तब महफिल का रंग अपने आप बदल जाता है और उदय जी ने यह प्रस्तुत करके बताया। पखावज पर उदय अवाड ने संगत की।
इसके पश्चात संभाला पं.कार्तिक कुमार के सुपुत्र नीलाद्री कुमार ने। सितार को इलेक्ट्रानिक स्वरुप देकर झिटार का निर्माण करने वाले युवा कलाकार नीलाद्री की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कार्यक्रम के पूर्व युवाओं ने उन्हें लगातार घेरे रखा। राग झिंझोटी की प्रस्तुति नीलाद्री ने सितार पर दी वह युवाओं को वर्षों तक याद रहेगी। वे सितार में मींड का प्रयोग करते है और सुरों पर ठहराव और तार की तन्यता को उसकी सीमा तक ले जाते है जिससे बजाने का माधुर्य ओर भी बढ़ जाता है। सितार वादन में उनकी तैयारी देखते बनती है तेज गति से हाथ चलाना और चमत्कृत कर देने वाली तिहाइयों के माध्यम से उन्होंने प्रभावित किया। रुपक ताल में निबिद्ध गत अपने आप में काफी प्रभावी थी और इस पर लयअनुसार तबलावादक सत्यजीत तलवलकर ने वादन किया वह यह बताता है कि संगत किस तरह की होना चाहिए। तीन ताल में भी आपने गत प्रस्तुत की और वादन का समापन आपने राग भैरवी की धुन से किया। आरंभ में शासकीय माधव संगीत महाविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा ध्रुपद की प्रस्तुति दी जिसमें तानसेन रचित बंदिश थी। पखावज पर संजय आगले ने संगत की।
कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर मुख्यमंत्री ने बैजू बावरा कार्यक्रम आयोजित करने और संगीत के पुरस्कारों की राशी पांच लाख करने की भी घोषणा की। इस अवसर पर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय उड्डयन मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और मप्र सरकार की संस्कृति पर्यटन अध्यात्म मंत्री सुश्री ऊषा ठाकुर व उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक जयंत भिसे भी उपस्थित थे।
युवाओं की भागीदारी अच्छा संकेत
भारतीय शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों में ग्वालियर के युवाओं ने बढ़चढ़ कर भाग लिया है। आयोजन स्थल पर युवाओं की संख्या देखकर काफी अच्छा भी लगता है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रति युवाओं का आकर्षण बढ़ता जा रहा है।