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तानसेन समारोह 2021: गमक में खिले सूफियाना संगीत के फूल

ग्वालियर। सूफी संगीत की एक अलग ही तासीर है। दरअसल सूफी संगीत सूफी संतों की पवित्र वाणियाँ हैं जो ख़ुदा और बंदे के बीच एक पाक इश्क़ के रिश्ते को कायम करता है। सूफियाना संगीत को सिद्ध प्रार्थना के रूप में भी गाया बजाया और सुना जाता है। विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह के अन्तर्गत शनिवार की शाम यहां हजीरा अतीत इंटक मैदान में आयोजित पूर्वरंग ” गमक” की सभा मे सूफी संगीत के सुर खूब मचले। विख्यात सूफी गायक पद्मश्री ग्वालियर। सूफी संगीत की एक अलग ही तासीर है। दरअसल सूफी संगीत सूफी संतों की पवित्र वाणियाँ हैं जो ख़ुदा और बंदे के बीच एक पाक इश्क़ के रिश्ते को कायम करता है। सूफियाना संगीत को सिद्ध प्रार्थना के रूप में भी गाया बजाया और सुना जाता है। विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह के अन्तर्गत शनिवार की शाम यहां हजीरा अतीत इंटक मैदान में आयोजित पूर्वरंग ” गमक” की सभा मे सूफी संगीत के सुर खूब मचले। विख्यात सूफी गायक पद्मश्री पूरनचंद वडाली ने जब ख़ुदा को अपना मासूक मानते हुए सूफी कलाम -” तुझे तक्या तो लगा मुझे ऐसे जैसे मेरी ईद हो गई ” को झूमकर गाया, तो पंडाल में मौजूद रसिक एक ऐसी दुनिया में पंहुच गए जहाँ सिर्फ इश्क़, मोहब्बत भाई चारे के फूल खिलते हैं।

दरअसल गमक एक ऐसा सांगीतिक आयोजन है जो तानसेन समारोह का हिस्सा है। इसे पूर्वरंग के तहत  आयोजित किया जाता है । इसमें उपशास्त्रीय , सुगम ,लोक एवं  सूफी संगीत को शामिल किया गया है। आज की सभा सूफी संगीत पर केंद्रित थी, प्रख्यात सूफी गायक उस्ताद पूरन चंद वडाली अपने पुत्र लखविंदर वडाली के साथ गमक के मंच पर अवतरित हुए , सारा पंडाल मानो  उठ खड़ा हुआ, तालियों की गड़गड़ाहट से रसिकों ने उनका स्वागत किया। जवाब में उस्ताद पूरन चंद वडाली ने शेर पढ़ा – ” जितना दिया है सरकार ने मुझको उतनी मेरी औकात नहीं,

ये तो करम है उनका बरना मुझमें तो कोई बात नहीं।

वे आगे बोले तानसेन कहीं गए नही वो तो रूहानी आत्मा है जो यहीं है ये हमारा सौभाग्य है कि आज उनके दर पर हम हाजिरी लगाने आये हैं।

ओर इसके बाद जो सूफी गायन का सिलसिला शुरू हुआ तो बस चलता ही गया। उन्होंने सबसे पहले  ” तुझे तक्या रो लगा मुझे ऐसे जैसे मेरी ईद हो गई” की पेशकश की तो सारा आलम झूम उठा। बंदे द्वारा खुदा को देखने के अंदाज़ को जिस तरह इस रचना में पेश किया गया है, उसे पिता पुत्र की जोड़ी ने अपनी गायकी में बखूबी उतार दिया। पहली प्रस्तुति में ही सूफियाना रंग तारी हो गया।

अगली प्रस्तुतियां भी लाजवाब रहीं। ” तू माने या माने दिलदारा असां ते तैनूं रब मनया”  इस कलाम को भी उन्होंने पूरी शिद्दत से पेश किया। इसके बाद ” वे माहिया तेरे बेखन नूं” और नी मैं कमली यार दी कमली” जैसे पंजाबी और सूफियाना रचनाओं को पेश कर वडाली पिता पुत्र ने रसिकों को ऐसा रसपान कराया कि रसिक मानो सुध बुध खो बैठे।

उस्ताद पूरनचंद वडाली की गायकी की एक खास बात ये है कि उसमें कोई सिलसिला का योजना नहीं है। वे कहीं से भी कुछ भी गाते हैं और जो गाते हैं वो लाजवाब ही होता है, उसमें आपको संगीत के सभी तत्व मिलेंगे। अपने सूफी गायन में वे कहीं से भी आलाप उठा लेते हैं तो तान का अंग भी वे खूब लेते हैं , गमक और मींड का कमाल भी आपको उनकी गायकी में सुनने को मिलेगी।

बहरहाल अपने गायन का समापन उन्होंने बुल्ले शाह की रचना “दमादम मस्त कलंदर ” से किया.।उनके साथ तबले पर रौशनलाल, ढोलक पर राकेश कुमार, की बोर्ड पर मुनीश कुमार, ऑक्टोपैड पर राजिंदर सिंह एवं गिटार पर दानिश कुमार ने साथ दिया जबकि कौरस में सुभाष सिंह अजय कुमार गगनदीप सिंह मौसम अली  एवं जयकरण ने साथ दिया।

शुरू में प्रमुख सचिव संस्कृति श्री शिवशेखर शुक्ला एवं संभागीय आयुक्त आशीष सक्सेना ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया इसके पश्चात उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक जयंत माधव भिसे ने अतिथियों का स्वागत किया। अतिथियों ने पूरन चंद वडाली एवं लखविंदर वडाली का  स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन श्री अशोक आनंद ने किया।

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हम खुशनसीब हैं कि संगीत सम्राट की बारगाह में गाने का मौका मिला 

(कार्यक्रम के पूर्व हमारे प्रतिनिधि श्री अनुराग तागड़े की सूफी गायक पद्मश्री उस्ताद पूरन चंद वडाली एवं लखविंदर वडाली से बातचीत का सारांश )

मियां तानसेन तो संगीत सम्राट थे, सुरों के बादशाह और कलंदर थे, हम तो उस महान हस्ती की पैरों की धूल भी नहीं। ये क्या कम खुशनसीबी है कि उनकी बारगाह में गाने का मौका मिला है। अजी हम बहुत किस्मत वाले हैं, जो मध्यप्रदेश की सरकार और डिपार्टमेंट ऑफ कल्चर ने हमें ये मौका दिया है, हमारी तो वर्षों की आस पूरी हो गई। अब तो बाबा तानसेन से इतनी इल्तिज़ा है कि बस कल सुर सही से लग जाए..।

ये कहना है सूफी गायकी के सरताज़ पद्मश्री उस्ताद पूरन चंद वडाली और उनके सुपुत्र लखविंदर वडाली का। दोनों कल यहां हजीरा स्थित इंटक मैदान में तानसेन समारोह के तहत आयोजित पूर्वरंग कार्यक्रम गमक के तहत प्रस्तुति देने आए हैं।

आज शाम ग्वालियर आने के बाद उन्होंने अखबार वालों से बातचीत की और सिलसिलेवार सवालों के जवाब दिए। दरअसल, वडाली बंधुओं की जोड़ी हुआ करती थी, पूरन चंद और प्यारेलाल की जोड़ी। 2018 में ये जोड़ी टूट गई। छोटे भाई प्यारेलाल का निधन हो गया। तब से प्यारे लाल की जगह लखविंदर ने ले ली, जो पूरन चंद जी के बेटे हैं, और पंजाब सहित पूरे उत्तर भारत में सूफी गायकी का एक बड़ा नाम है। एक बात और खास है इन पिता पुत्रों की वो ये की दोनों ही किसी प्लानिंग या योजना से नहीं गाते, मंच पर पहुंचने के बाद कोई रूह उनके अंतस में प्रवेश कर जाती है और वही सिलसिलेवार उनसे कहती है कि अब ये गाओ अब वो गाओ और बस वे गाते चले जाते हैं।

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बहरहाल, आज जब पिता पुत्र की ये जोड़ी मीडिया से मुखातिब हुई तो दोनों बेहद खुश थे। उनका कहना था कि ग्वालियर में वे पहले भी कई दफा आए हैं पर इस बार का आना खास है, हर कलाकार की चाहत होती है इस पवित्र जगह आने और गाने की। हमारी भी वर्षों से यहां आने की तमन्ना थी जो अब पूरी हो रही है। वे कहते हैं कि कल बाबा तानसेन का आशीर्वाद और कृपा रही तो कुछ अदभुत गाना होगा।

बुल्ले शाह , बाबा फरीद कबीर शाह हुसैन जैसे सूफियों के कलाम गाकर दुनिया में अमन और मोहब्बत का पैगाम बांटने वाले उस्ताद पूरन चंद वडाली का जीवन किसी सूफी से कम नहीं। बाहरी दुनिया की दौड़भाग से बेखबर वे तो बस सुर की साधना में लगे रहते हैं। मध्यप्रदेश से अपने रिश्ते का जिक्र करते हुए वे कहते है कि एमपी वालों ने बहुत प्यार दिया है। यहां की सरकार 1999 में हमें तुलसी सम्मान से नवाज चुकी है।

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पहलवानी का था शौक, पिता गाने के लिए पीटते थे सो बाल ही कटवा दिए

अपने शुरुआती दिनों के बारे में उस्ताद पूरन चंद वडाली बताते हैं कि उन्हें पहलवानी का शौक था। लेकिन पिता ठाकुरदास जो खुद गायक थे, चाहते थे कि मैं भी गायक बनूँ। वे इसके लिए जबरदस्ती करते थे। कभी कभी तो केश पकड़कर पीटते भी। ऐसे में मैंने बाल ही कटवा दिए। लेकिन बाद में समझ आई सो उनसे गाना सीखा। पटियाला घराने के पंडित दुर्गादास जी को गुरु बनाया उनसे भी सीखा। और जो कुछ सीखा वो सबके सामने है।

सिक्खों के छठे गुरु श्री हरगोविंद साहब जी के जन्मस्थल गुरु की वडाली में पैदा हुए पूरन चंद वडाली अपने छोटे भाई प्यारेलाल को बहुत मिस करते हैं। भावुक होते हुए वे कहते है कि कुछ साल पहले हम दोनों यहां मेले में गाने आए थे। अब वो नहीं है। पुरानी यादें ताज़ा करते हुए वे कहते हैं कि प्यारे मुझसे 13 साल छोटा था। मैंने ही उसे तैयार किया , फिर साथ साथ ही गाने लगे। हमारी जोड़ी खूब मक़बूल भी हुई। अब तो बस यादें ही रह गईं हैं।

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पूरन चंद वडाली ने फिल्मों भी अपनी आवाज का जादू बिखेरा है। लेकिन उन्हें मज़ा मंच के गाने में ही आता है। वे कहते हैं कि फ़िल्म का गाना सीमित है, उसमें उपज नही हो सकती। जबकि मंच पर श्रोताओं के सामने अंदर से खुद ब खुद नई चीजें निकलती हैं।

लखविंदर वडाली भी सूफी गायकी का बड़ा नाम है। उन्होंने कई फिल्मों में गाया है और कुछ पंजाबी फिल्मों में एक्टिंग भी की है। इनमें अँखियाँ उडीक दिया, और छेवा दरिया जैसी फिल्में प्रमुख हैं। उनके कई एलबम भी रिलीज हुई हैं। वे कहते है कि सूफी गायकी हमारी परंपरा है, अपने पिता के साथ वे इसे आगे बढ़ा रहे हैं। आज के दौर में बाबा बुल्ले शाह बाबा फरीद सुल्तान बाहु बारिस शाह जैसे सूफियों द्वारा जलाई गई अमन की जोत को सहेजकर रखने की जरूरत है, हमारे देश की भी इसकी जरूरत है।

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