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संगीत की शास्त्रीयता से लेकर गज़लों  की रुह को छूने वाले उस्ताद

रुहानी सुकून और सुरों की सच्चाई के पीछे प्रत्येक कलाकार की रियाज लगातार चलती रहती है… गुलाम मुस्तफा खान साहेब के इंतकाल ने अपने आप में एक ऐसा रिक्त स्थान पैदा कर गया है जो अब भरने से रहा। उस्ताद जी एक कलाकार की असल परिभाषा को जीवंत करने के लिए जाने जाते है। वे एक शानदार कलाकार होने के साथ ही बेहतरीन संगीत शिक्षक भी थे।

एक कलाकार के लोकप्रिय होने के कई कारण रहते है जिसमें मुख्य कारण उसकी कलाकारी तो रहती है साथ ही उसका स्वभाव भी मायने रखता है। उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान साहेब की चर्चा सभी दूर इस कारण होती है कि उन्होंने सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर से लेकर सोनू निगम, हरिहरन, उस्ताद राशिद खान जैसे गायकों का मार्गदर्शन किया।

परंतु मेरा मानना है कि उस्ताद जी अपने आप में परिपूर्ण कलाकार थे। वे रामपुर सहसवान घराने का प्रतिनिधित्व तो करते ही थे परंतु उनकी माताजी ग्वालियर घराने से थी। इस कारण उनकी गायकी में सुरों के ठहराव की जब भी बात होती है तब ग्वालियर घराने की ही बात होती है।

उस्तादी जी की गायकी में परिपूर्णता है वहीं एक जो पक्ष है गजल और ठुमरी एवं फिल्म संगीत का उसे लेकर चर्चाएं बहुत होती रही और यहीं से लोकप्रियता का मापदंड अलग हो जाता है। एमटीवी कोक स्टुडियों में उस्ताद जी जब तीन पीढ़ियों के साथ गाना गाते है और कंपोजिशन ए.आर रहमान का होता है तब युवाओं में भी कौतूहुल होता है कि आखिर ऐसी क्या बात है कि फिल्म इंडस्ट्री के बड़े से बड़े गायकों ने उनसे मार्गदर्शन लिया है।

दरअसल उस्ताद जी ने काफी छोटी उम्र से मंच संभाला और आकाशवाणी से भी ग्रेड प्राप्त कर ली थी। उन्होंने फिल्मस् डिविजन के साथ भी कई डाक्युमेंट्रीज में कार्य किया जिसमें संगीत देने से लेकर एक फिल्म में तो एक्टिंग तक की है। इसका कारण एक ही रहा उनका स्वभाव और दूसरा समय के अनुरुप अपने आप में बदलाव किया। उन्होंने संगीत को संगीत माना और उसके प्रस्तुतिकरण का तरीका रागदारी में हो गजल में हो गीत में हो सभी में उन्होंने पूर्ण आनंद के साथ कार्य किया। खासतौर पर ग़ज़ल गायकी में उन्हें खासा आनंद आता था क्योंकि वे स्वयं भी शेरो शायरी को समझते थे।

किसी भी ग़ज़ल का कम्पोजिशन करने से पहले वे स्वयं शेरो शायरी को समझते और फिर उसे सुरों को सौपतें थे। वे निश्चित रुप से शब्द के महत्व को समझते थे। बात नए प्रयोगों की हो तब भी वे तैयार रहते थे। श्रृती की बारिकियों की बात हो या फिर राग के स्वभाव की बात हो उन्होंने लगातार प्रयोग किए और सबसे बड़ी बात अपने संगीत के ज्ञान को लगातार अपने शिष्यों में बांटते रहे। संगीत की शिक्षा देना अपने आप में अलग शास्त्र है जिसमें प्रत्येक शिष्य के स्वभाव और गले को देखकर उसे सुधारना और निखारना होता है और उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान साहेब को इसमें महारत हासिल थी।

गुलाम मुस्तफा खान ने संगीत प्रस्तुतिकरण और संगीत शिक्षा दोनों ही क्षेत्रों में आदर्श स्थापित किया और अपनी गायकी ऐसे शिष्यों को सौंप गए है जो उनके नाम को सदियों तक आगे बढ़ाते रहेंगे।

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