‘माधुरीजी आप बॉलीवुड डांस सिखाइए, कथक नहीं’ सिने जगत् की जानीमानी अदाकारा माधुरी दीक्षित को यह दो टूक राय दी है कथक नृत्यांगना एवं गुरु राजेश्वरी कुमार ने।
एक शो है ‘जैम डेली’ उसमें हर सप्ताह ‘डांस विद माधुरी’ ऐपिसोड होता है जिसमें माधुरी दीक्षित गुरू के रूप में कथक सिखाती हैं। जिस पोस्ट को लेकर उन्हें यह राय दी गई है वह 21 अक्टूबर 2020 की पोस्ट है और उसे अब तक 63,999 लोग देख चुके हैं और केवल 34 लोगों ने नापसंद किया है। राजेश्वरी कुमार ने अपने यू-ट्यूब चैनल पर 4 जून 2021 को उक्त पोस्ट को रेखांकित किया।
राजेश्वरी का कहना है कि जब पूरा भारत आपको देख रहा हो तो आपको सही नृत्य सिखाना चाहिए। उनका साफ़ मानना है कि टीवी पर जो कथक दिखाया जाता है वह शास्त्रीय नृत्य नहीं है। शास्त्रीय नृत्य मंच पर प्रदर्शित होता है और मंच के कलाकार ही उस सम्मान के हक़दार हैं, जो शास्त्रीय तरीके से उसे कर रहे हैं, केवल कथक का तड़का नहीं लगा रहे। माधुरी दीक्षित उस वीडियो में परन सिखा रही हैं। जिसे कथक की थोड़ी शब्दावली भी पता है वह जानता है कि केवल पखावज के बोलों की तालबद्ध रचना जो एक आवर्तन से कम की न हो, उसे परन कहते हैं। चूँकि इसमें पखावज के बोलों का प्रयोग होता है इसलिए ज़ाहिरन वे काफी दमदार और जोशीले होते हैं। वहीं केवल नृत्य के वर्ण जैसे ता, थेई, तत, दिग, दिग, तिग्दा, थुन आदि से निर्मित कोई तालबद्ध रचना जो एक आवर्तन से कम की न हो वह तोड़ा कहलाती है। यह बात यहाँ बताने का उद्देश्य आगे की कुछ पंक्तियों में आपके सामने स्पष्ट हो जाएगा।
श्वेत रंग में एक बूँद भी गुलाबी रंग की डाल दें तो वह श्वेत नहीं रह जाता, उसमें गुलाबीपन का अक्स आ जाता है वैसा ही कुछ शास्त्रीय विधाओं का है। गुरू राजेश्वरी कहती हैं कथक की बात आ जाती है तो रेखा सीधी हो जाती है और वह थोड़ी भी टेढ़ी हो जाए तो त्रुटि आ जाती है। उनका माधुरी को यही कहना है कि वे यदि पूरे देश को गुरू के पद पर बैठकर सिखा रही है तो उनकी कला में कोई दोष नहीं होना चाहिए। माधुरी के कार्यक्रम का नाम ‘जस्ट अ मिनट टु लरन् कथक’ है और इस नाम से गुरू राजेश्वरी का आक्षेप है, जो सही भी है। उनका कहना है इतना बड़ा विषय एक मिनट की सोच के साथ कैसे सिखाया जा सकता है। पूरी बंदिश सीखने में एक ज़िंदगी निकल जाती है। वे माधुरी से कहती हैं कि कथक के विषय को इतना छोटा करेंगी तो बड़े कथक के बड़े आयाम कभी ऩजर नहीं आएँगे।
कथक केंद्र से पंडित राजेंद्र गंगानीजी (जयपुर घराना) से कथक सीखने वाली राजेश्वरी जब कथक के बड़े आयाम की बात करती हैं, तो उसके पीछे उनका पिछले लगभग 15 साल का मंच पर कथक प्रस्तुति देने का अनुभव बोलता है। कथक कहें या किसी भी शास्त्रीय कला की बात कर ले उसमें कई सालों की विधिवत् शिक्षा, गुरू की संगत-सोहबत का लंबा असर, प्रस्तुतियों का अनुभव साध्य होता है उसके बाद गुरू का पद प्राप्त होता है। यह भी होता है कि कोई कलाकार अपने गुरू के होते हुए स्वयं कभी नहीं सिखाता या कम से कम तब तक तो नहीं सिखाता जब तक गुरू स्वयं उसे सिखाने की अनुमति नहीं देते। गुरू राजेश्वरी कहती हैं कि माधुरीजी को पद्मश्री मिली है तो बॉलीवुड में उनके कार्य के लिए, कथक क्षेत्र में उनके योगदान के लिए नहीं। इसलिए वे कहती हैं कि वे माधुरी अपने गहरे अनुभवों के साथ बॉलीवुड नृत्य सिखाएँ, कथक नहीं।
जिस परन को माधुरी सिखा रही हैं, उसकी नौ-दस त्रुटियाँ गुरू राजेश्वरी गिनवा देती हैं। सबसे पहले तो माधुरी दीक्षित ने जिस तरह से हाथ रखा है वह तरीका ही ग़लत है। उनका अँगूठा बाकी अँगुलियों से जुदा दिखता है। जबकि अँगूठा तब तक अलग नहीं दिखाया जा सकता जब तक कि किन्हीं खास मुद्राओं को न दिखाया जा रहा हो। वे दूसरी त्रुटि इंगित करती हैं जिसमें पैरों को ग़लत तरीके से उठाया गया है। तीसरी त्रुटि में शरीर के उछाल को देखती हैं। कथक में इस तरह शरीर में उछाल नहीं दर्शाया जाता। वह लोकनृत्य या बॉलीवुड नृत्य में हो सकता है, पर कथक में नहीं। चौथी त्रुटि में वे उस बोल ‘दिगदिग’ को बताती हैं, जो बरता गया है। यह बोल एड़ी का बोल है, अर्थात् इसे एड़ी से निकाला जाता है पूरे पैर या पंजों से नहीं। माधुरी दीक्षित ने उत्पत्ति मुद्रा को दर्शाया है और वह भी ग़लत तरीके से। हस्त संचालन जिस मुद्रा से शुरू होता है वह उत्पत्ति मुद्रा होती है। यह पाँचवा दोष है क्योंकि इसमें हाथ भी गिरे हुए हैं, जबकि हाथ ऐसे कभी गिराए नहीं जाते। छठे दोष को समझने के लिए पूर्व वर्णित परन की परिभाषा को समझना होगा। गुरू राजेश्वरी का कहना है कि परन में श्रृंगार रस का उपयोग नहीं किया जाता। सातवाँ दोष वे कहती हैं कि कृष्ण पकड़ रहा है और राधा छुड़ा रही है तो इस भावाभिव्यक्ति में भी कथक में सौम्यता होगी, भड़कीलापन नहीं। आठवीं वाक् त्रुटि है। माधुरी कह रही हैं कि सर्कल लेने हैं जबकि वह अर्धवृत्त मतलब सेमी सर्कल ले रही हैं और कह सर्कल रही हैं। गुरू के पद पर बैठने के बाद बोलना भी सँभलकर होता है। नौंवी तकनीकी खामी है। सम पर समाप्ति में जिस तरह पैर के पंजों को खड़ा किया गया है, उससे सम नहीं दिखाई जा सकती। सम लगाते समय सीधे पैर के पीछे दूसरा पैर खड़ा रहता है। यह भी ठाट से जुड़ा है। गुरू राजेश्वरी ने और महीनता से पकड़ते हुए कहा कि माधुरी जो कर रही हैं, उस बंदिश को उन्होंने परन कहा है लेकिन उसमें कुछ बोल तोड़े-टुकड़े के हैं जैसे तथूँग, थूँग, ताथेई, थेई। टुकड़ों के बोल आने से यह परन नहीं हो सकती और परन के बोल होने से इसे तोड़ा भी नहीं कह सकते। यह तो बस कुछ ऐसे बोलों का चुनाव है जिसमें सिर्फ़ सम से सम तक आना दिखाया गया है, नियमों का पालन नहीं हुआ है।
राजेश्वरी की फेसबुक पोस्ट पर तो लोग प्रतिक्रिया देने से बचते रहे, परन्तु कुछ कथक के व्हाट्सएप्प ग्रुप्स एवं यूट्यूब पर लगभग सभी उनकी राय से सहमत दिखें।
मॉस्को से एक कत्थक गुरु ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पोस्ट किया “वैसे तो राजेश्वरी की ज़्यादातर वीडियो बहुत क्रिटिसाइज की जाती रही हैं । और इस वीडियो में काफी साहस से और अपने से कहीं बड़े कलाकारों के विरोध में कुछ तथ्य पेश किए हैं, जिनमें ज्यादातर सही भी हैं । कथक पर बॉलीवुड संक्रमण को रोकने का एक अच्छा प्रयास है ।”
माधुरी दीक्षित के वीडियो को इतनी बारीकी से देखकर उसकी इतनी महीन विवेचना उन्होंने की है, उसके पीछे की उनकी पीड़ा साफ़ झलकती है। वे कहीं भी तल्ख नहीं होतीं, बहुत सौम्यता से अपनी बात कहती है लेकिन साफ़ बात कहती है। आज जब शास्त्रीय कलाओं में फ्यूज़न के नाम पर कुछ भी मिलावट हो रही है, तब उसकी शास्त्रीयता और शुद्धता को बचाया जाना उतना ही आवश्यक और उतना ही कठिन हो गया है। माधुरी का अपना फ़ैन सर्कल है और उनके वीडियो को चाहने वालों से भी ज़्यादा उन्हें चाहने वाले हैं, ऐसे में तो उन्हें और भी सतर्क रहना चाहिए। यदि वे सतर्क नहीं हैं, तो राजेश्वरी जैसे अन्य गुरूओं को सजग होना ही पड़ेगा, यही समय की आवश्यकता है।