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सुरों की गहराई मापने वाली और अपनी शर्तोें पर अडिग रहने वाली गायिका

सुर एक, पर हरेक राग में उसे किस तरह से गाया जाता है, श्रुति की बारिकी को ध्यान में रखकर यह किशोरीताई अमोणकर बेहतरीन तरीके से जानती थीं।

भूपाली, हंसध्वनि और बागेश्री जैसे रागों को उन्होंने अपने गायन से अलहदा बना दिया… मीरा के भजनों से लेकर फिल्म गीत गाया पत्थरों ने के गीत “सांसों के तार पर गीत गाया पत्थरों ने” हो या फिर नब्बे के दशक में गाया फिल्म दृष्टि का गीत हो… किशोरी ताई सही मायने में अपनी शर्तों पर प्रस्तुतियां देती थीं और कई लोगों को उनका यह स्वभाव अखरता था। वे कहते थे कि किशोरीताई से गाना गवाना अपने आप में मुश्किल कार्य है क्योंकि पता नहीं वे किस बात से नाराज हो जाएं।

किशोरी ताई उस पीढ़ी की गायिका हैं जिन्होंने सही मायने में घरानेदार तालीम को आत्मसात किया और उसे मंच पर उसी तरह से प्रस्तुत किया। हालांकि कई मौकों पर वे यह भी कहती थीं कि “भारतीय शास्त्रीय संगीत को घरानों में मत बांधो… संगीत तो संगीत है।”

आयोजकों के अनुसार नहीं अपने अनुसार प्रस्तुति 

किशोरी ताई बहुत कम ही बात करती थीं और सही मायने में उनसे बात करने की हिम्मत ही कम लोगों में थी। वे अपने कम्फर्ट झोन में रहना पसंद करती थीं और लगातार कार्यक्रम देते रहना उनकी तासीर में नहीं था।

किशोरी ताई से कार्यक्रम देने की गुजारिश करने वाले आयोजकों का टेस्ट पहले वे स्वयं ही ले लेती थीं और अपनी तमाम तरह की शर्तों को वे पहले ही बता देती थीं कि अगर यह सब मंजूर हो तभी मैं प्रस्तुति दूंगी।

वे बिल्कुल अलग ही तरह की कलाकार थीं जो आयोजकों से अच्छे होटल में रहने की व्यवस्था, कार की व्यवस्था करने के लिए कहती थीं। इसके अलावा मंच पर भी उनके अनुरुप व्यवस्था होनी चाहिए तभी वे गाती थीं। कई प्रस्तुतियों में उन्होंने मंच पर तेज रोशनी को बंद करवा दिया क्योंकि तेज रोशनी के कारण उन्हें सच्चे सुर लगाने में समस्या आ रही थी।

कई बार वे श्रोताओं के व्यवहार से भी नाराज होकर गाना बंद कर देती थीं। उन्हें यह पसंद नहीं था कि मंच पर वे गाना गाएं और श्रोता मजे से कुछ भी खाते रहें। एक कार्यक्रम में आगे बैठे श्रोताओं में से एक महिला ने पान खाना आरंभ कर दिया तब किशोरी ताई भड़क गईं और कहा कि मैं क्या तुम्हें कोठेवाली लगती हूं… इतना गुस्सा भरा हुआ था उनमें…

उनके गुस्से के पीछे भी कारण था क्योंकि गुरु और मां मोघुबाई कुर्डीकर ने काफी अल्प आयु में ही अपने पति को खो दिया था। तीन बच्चों को संभालना था और तब मोघुबाई कुर्डीकर ने प्रस्तुतियां देना आरंभ किया था। नन्हीं किशोरी भी उनके साथ प्रस्तुति में साथ देती थीं। किशोरी ताई बताती थीं कि उनकी मां के साथ कार्यक्रम आयोजक काफी बुरा व्यवहार करते थे। उन्हें रुकने के लिए भी अच्छी जगह नहीं देते थे और किसी के भी घर में रुकवा देते थे। इतना ही नहीं मानदेय भी काफी कम देते थे परंतु मां की मजबूरी थी कि उन्हें तीन बच्चे पालने थे। यही कारण रहा कि किशोरी ताई अपने कार्यक्रमों को लेकर काफी सजग रहती थीं और मानदेय से लेकर रहने, खाने और परिवहन की ए क्लास व्यवस्था की मांग करती थीं। उनका यह भी मानना था कि कलाकार अपना सर्वस्व लगाकर सुर साधना करता है इसलिए उसे यह सबकुछ मिलना ही चाहिए।

https://youtu.be/ltMQ_5yrmwA

गुरु केवल मार्ग दिखा सकता है

किशोरी ताई का यह मानना था कि शास्त्रीय संगीत की तालीम के दौरान गुरु आपको केवल मार्ग दिखा सकता है आखिर चलना आपको ही है। वे कहती थीं कि शास्त्रीय संगीत में एक हद तक आपको बंदिश आदि रटना पड़ती है पर आप अपने शिष्यों को इस प्रकार की शिक्षा दें ताकि वे अपनी कल्पना शक्ति का प्रयोग कर सकें।

जब किशोरी ताई की आवाज ही बंद हो गई थी

किशोरी ताई सुरों से उत्पन्न रसों के बारे में काफी बेहतरीन तरीके से बोलती थीं। वे गहराई में जाकर श्रुतियों की बात करती थीं। कैसे दो रागों में प्रयोग एक ही सुर अलग-अलग होते हैं और उनके अलग होने से कैसे अलग-अलग रस उत्पन्न होते हैं। जब किशोरी ताई मात्र 25 वर्ष की थीं तब वे बेहद शानदार तरीके से गाती थीं परंतु एक दिन अचानक उनकी आवाज ही बंद हो गई। वे काफी परेशान थीं और समझ में नहीं आ रहा था क्या करें तब पुणे के एक संत ने उन्हें आवाज वापस लाने का आश्वासन दिया था और लगभग तीन वर्ष तक आयुर्वेद के इलाज से उनकी आवाज वापस लौट पाई थी।

ग्रीन रूम में किसी को भी प्रवेश नहीं

किशोर ताई अपनी तुनकमिजाजी के लिए प्रसिद्ध थीं और यही कारण था कि कार्यक्रम के पूर्व ग्रीन रूम में उनके पास कोई भी जा नहीं सकता था। उनका मानना था कि कलाकार और प्रस्तुति देने वाले राग के बीच किसी का होना व्यवधान पैदा करता है। वे कार्यक्रम के बाद भी किसी से भी मिलना कम ही पसंद करती थीं फिर चाहे वह कितना भी बड़ा कलाकार क्यों न हो। वे मीडिया से भी दूूर ही रहती थीं और कई बार साक्षात्कार लेने वाले का साक्षात्कार लेती थीं कि पहले तुम बताओ तुम्हें शास्त्रीय संगीत के बारे में क्या पता है, जब वे संतुष्ट हो जाती थीं तब दिल खोलकर बात करती थीं।

भिन्न षडज में दिखा था असल स्वरुप

किशोरी ताई पर अमोल पालेकर ने भिन्न षडज नामक डाक्युमेंट्री बनाई थी जिसमें उनके असली स्वरुप के दर्शन हुए थे। इसमें उनके प्रसिद्ध राग भूपाली और बागेश्री के बारे में भी है। उनके व्यक्तित्व के बारे में भी बहुत कुछ बताया गया है। (देखें भिन्न षडज वीडियो लेख के अंत में)

तीनों सप्तकों में समान अधिकार

किशोरी ताई के गायन के बारे में बात करें तो वे जयपुर घराने की बारिकियों को आत्मसात कर प्रस्तुति देती थीं और आलापचारी के दौरान ही यह बात सामने आ जाती थी। सुरों के बीच के अंतर को वे अपनी मिठास के साथ भरती थीं और किस प्रकार से सुरों के अलग-अलग समूहों को अपनी आवाज की चासनी में डुबो कर प्रस्तुत करना है यह अपने आप में उनकी पहचान थी। तीनों सप्तकों में समान रूप से गाना और फोर्स के साथ ताने लेना यह उनकी पहचान थी। वे स्वयं महिला शास्त्रीय गायकों की रोल मॉडल थीं और भविष्य में भी रहेंगी।

किशोरी ताई के शास्त्रीय संगीत के परिदृश्य में लगातार बने रहने का कारण ही यह रहता था कि वे सच्ची सुर साधिका थी और गायन को जीना जानती थी। किशोरी अमोणकर ने शास्त्रीय संगीत की उस पीढ़ी को भी देखा था जो लगातार संघर्ष करती रहती थी और आज के आधुनिक कलाकारों को भी देखा था। इस कारण वे अपनी एक्स्लुसिव इमेज को बनाए रखती थी और एक ऐसा आभामंडल अपने आसपास बनाए रखती थी जिससे लोगो में डरमिश्रित आश्चर्य बना रहता था। सोशल मीडिया के जमाने में भी वे ऐसा करने में सफल रही थी यह आज के होनहार युवा कलाकारों को जान लेना चाहिए। किशोरी ताई के नहीं रहने से खाली स्थान बहुत बड़ा हुआ है परंतु उनकी शिष्याएं भी यह हुनर बखुबी जानती है और सबसे खास बात यह कि वे सभी गाना बहुत अच्छी तरह से जानती है और बाद में बाकी सबकुछ जिसे आजकल टेंट्रम कहा जाता है।

3 thoughts on “सुरों की गहराई मापने वाली और अपनी शर्तोें पर अडिग रहने वाली गायिका”

  1. Very well articulated..
    Congratulations Anurag and Classical claps for this wonderful article on Kishori Tai.
    I loved it.

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  2. Writing style and content is top quality. Knowing your legends is made truly interesting. Hope to read many more of such insight.

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