भारतीय शास्त्रीय संगीत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित महोत्सव “तानसेन समारोह” के मुख्य मंच की थीम तय हो गई है। इस बार ओंकारेश्वर स्थित सिद्धनाथ मंदिर की थीम पर बने भव्य एवं आकर्षक मंच पर बैठकर ब्रम्हनाद के शीर्षस्थ साधक संगीत सम्राट तानसेन को स्वरांजलि अर्पित करेंगे।
राज्य शासन के संस्कृति विभाग से जुड़ीं उस्ताद अलाउद्दीन की संगीत कला अकादमी एवं मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद द्वारा संगीत सम्राट तानसेन की स्मृति में हर साल आयोजित होने वाले तानसेन समारोह के मुख्य मंच की पृष्ठभूमि में भारतीय वास्तुकला के ऐतिहासिक स्मारक को प्रदर्शित किया जाता है। इसी कड़ी में इस साल के तानसेन समारोह के मुख्य मंच की पृष्ठभूमि के लिये सिद्धनाथ मंदिर ओंकारेश्वर का चयन किया गया है।
वास्तुकला की दृष्टि से सिद्धनाथ मंदिर काफी प्रभावशाली है। भगवान भोले की नगरी ओंकारेश्वर में यह मंदिर एक द्वीप के पठारी भाग में स्थित है। इसे एक विशाल चबूतरे से आधार दिया गया है। जिसके चारों ओर विभिन्न मुद्राओं में बहुत से हाथियों की मूर्तियां खूबसूरती के साथ गढ़ी गई हैं। मंदिर के अंदर जाने के लिये चारों ओर से प्रवेश की व्यवस्था है। साथ ही एक भव्य सभा मण्डप भी बना हुआ है। हर सभा मण्डप में पत्थर से बने हुए 14 फीट ऊँचाई के 18 खम्बे बने हैं और इन पर मनोहारी कलाकृतियां भी बनी हुई हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है जब यह मंदिर अपने सही और पूर्ण रूप में होगा तो वह कितना भव्य और सुंदर दिखता होगा। मुगल शासक औरंगजेब ने खजाने की खोज में इस मंदिर को खंडित कर दिया था।
कुल 9 संगीत सभायें होंगीं
तानसेन समारोह की पूर्व संध्या यानि 25 दिसम्बर को हजीरा चौराहे के समीप स्थित इंटक मैदान में उप शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम पूर्वरंग “गमक” का आयोजन होगा। तानसेन समारोह के तहत पारंपरिक ढंग से 26 दिसम्बर को प्रात:काल तानसेन समाधि स्थल पर हरिकथा, मिलाद, शहनाई वादन व चादरपोशी होगी। 26 दिसम्बर को सायंकाल 6 बजे तानसेन शुभारंभ समारोह और पहली संगीत सभा आयोजित होगी। इस बार के समारोह में कुल 9 संगीत सभायें होंगी। पहली 7 संगीत सभायें सुर सम्राट तानसेन की समाधि एवं मोहम्मद गौस के मकबरा परिसर में भव्य एवं आकर्षक मंच पर सजेंगीं। समारोह की आठवीं सभा 30 दिसम्बर को सुर सम्राट तानसेन की जन्मस्थली बेहट में झिलमिल नदी के किनारे और नौवीं एवं आखिरी संक्षिप्त संगीत संभा ग्वालियर किले पर आयोजित होगी। प्रात:कालीन सभा हर दिन प्रात: 10 बजे और सांध्यकालीन सभा सायंकाल 6 बजे शुरू होंगीं।
संगीत के विद्यार्थियों को जोड़ने की अनुठी पहल
अक्सर यह कहा जाता है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत को लेकर युवाओं में खास रुची नहीं है और भारतीय शास्त्रीय संगीत युवाओं से दूर होते जा रहा है। यह पीड़ा कलाकार भी बताते आ रहे है पर यर्थाथ में इसका हल क्या है यह कोई नहीं बता पाता है। युवाओं को केवल कोसने भर से काम नहीं चलेगा बल्कि उन्हें सही राह भी दिखाना होगी और मौके भी देने होंगे।
प्रतिष्ठित तानसेन समारोह में भाग लेना या बड़े कलाकारों को सुनना और उनका सानिध्य पाना भारतीय शास्त्रीय संगीत के विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए सपने जैसा ही होता है। कई बार यह संभव हो पाता है और कई बार नहीं हो पाता । तानसेन समारोह को लेकर संस्कृति संचालनालय द्वारा अनूठी पहल की गई है जिसमें राजा मानसिंह तोमर संगीत कला विश्वविद्यालय अंतर्गत संचालित अशासकीय महाविद्यालयों के स्नातकोत्तर और शोध कर रहे छात्रों को तानसेन समारोह में भेजने की बात कही गई है। और यह केवल उपस्थिति बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि इन छात्रों को तानसेन समारोह पर प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी बनाना होगी जिसके नंबर दिए जा सकते है।
दरअसल भारतीय शास्त्रीय संगीत से युवाओं को जोड़ने वाली यह सोच बेहतरीन है। इस सोच का दायरा अभी भले ही छोटा हो परंतु राज्यस्तर पर अलग अलग संगीत के विद्यालयों महाविद्यालय जहां पर संगीत विषय हो उससे इसे जोड़ा जाना चाहिए। सगंीत से जुड़े सभी शिक्षकों को भी इस बड़े आयोजन से जोड़ा जाना चाहिए जो अपने यहां के बच्चों को लेकर यहां पर आए और एक सेशन बड़े कलाकारों के साथ बातचीत का हो। शोधार्धी शोध करे और इससे आगे आने वाले वर्षों में तानसेन समारोह का स्वरुप किस तरह हो इसमें क्या सकारात्मक बदलाव कर सकते है इस बारे में भी संस्कृति विभाग को जानकारी मिल सकती है।
शोध करने वाले छात्रों के लिए सुनहरा मौका
संगीत विषय में पीएचडी करने वालों के लिए यह अपने आप में सुनहरा मौका हो सकता है जिसमें एक ही जगह पर देश ही नहीं दुनिया के संगीतकार उपस्थित रहेंगे। वे उनसे विभिन्न मुद्दों पर बातचीत कर सकते है और अपने शोध के बारे में भी प्रश्न पूछ सकते है। इन प्रश्नों और साक्षात्कारों को वे अपने शोध में भी इस्तेमाल कर सकते है।
अन्य राज्यों को भी लिख सकते है पत्र
अगर संगीत से जुड़े छात्रों और शोधार्थियों को जोड़ने की योजना सफल रहती है तब देश के अन्य राज्यों के संस्कृति विभागों को भी वहां के संगीत के छात्रों को प्रोजेक्ट पर प्रदेश में भेजने का आग्रह किया जा सकता है। इस प्रकार की गतिविधियों से देशभर में तानसेन संगीत समारोह को अपने आप राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओर अधिक पहचान मिलते जाएगी जिसकी शुरुआत हमें अपने प्रदेश से ही करना होगी।