लगभग बीघा भर फैला लंबा परिसर हो, पास से नदी बहती हो और गुरु के सान्निध्य में सुबह से शाम केवल नृत्य की ही बात हो तो लग सकता है कि यह गुरुकुल पद्धति की किसी प्राचीन काल की कोई कहानी है लेकिन पुणे से लगे मरकल में पाँच दिवसीय आवासी कार्यशाला होने जा रही है और रम्य वातावरण में कथक सीखने का अनूठा आनंद वह भी विद्वान गुरु के सान्निध्य में रहकर पाया जा सकता है।
कथक नृत्य के क्षेत्र में डॉ. पुरु दाधीच का नाम विद्वान् कलाकार और कुशल अध्यापक के रूप में सुपरिचित है। कई शोध निबंधों के अलावा आपके नाम पर कई पुस्तकें भी दर्ज हैं। सृजनात्मकता के आड़े उम्र नहीं आ सकती इसे सिद्ध करते हुए आप अभी भी निरंतर क्रियाशील हैं… बिल्कुल इसी माह आपके द्वारा लिखित यति माला और काली स्तवन को सीखने का लाभ कथक नृत्य के नव विद्यार्थी तथा शोधार्थी ले सकते हैं। ताल की यतियों और उस पर लिखे यतिमाला पर केंद्रित यह कार्यशाला एकदम नई पहल है, हालाँकि इससे पहले गत वर्ष वे जातिमाला पर कार्यशाला का आयोजन कर चुके हैं।
नृत्य विधा से जुड़े लोग जानते हैं कि लय की प्रवृत्ति का नियम यति कहलाता है। विद्वानों द्वारा पाँच प्रकार की यतियाँ मानी गई हैं-समा, स्रोतोवहा, मृदंगा, पिपीलिका और गोपुच्छा। यदि इनके लक्षणों को देखें तो समा यति अपने नामारूप आदि, मध्य और अंत सब जगह एक ही प्रकार की लय रखती है। स्रोतोवहा नदी के प्रवाह के समान क्रमश: विलंबित, मध्य और द्रुत लयों को रखती है। मृदंगा के तीन भेद माने गए हैं- (अ) आदि और अंत में द्रुत और मध्य में विलंबित, (ब) आदि और अंत में द्रुत और मध्य में मध्य तथा (स) आदि और अंत में मध्य और बीच में विलंबित लय। पिपीलिका चींटी के समान चलती है जो मृदंगा से ठीक विपरीत है। इसके भी तीन भेद हैं- (अ) आदि और अंत में विलंबित और मध्य में द्रुत, (ब) आदि और अंत में मध्य और बीच में द्रुत तथा (स) आदि और अंत में विलंबित और बीच में मध्य लय। गोपुच्छा का अर्थ गाय की पूँछ होता है। यह स्रोतोवहा की ठीक विपरीत होती है। अर्थात् इसमें क्रमश: द्रुत, मध्य और विलंबित लय रखी जाती है।
इस बारे में नृत्य गुरु डॉ. दाधीच ने जानकारी दी- “वाक्य में जैसे अल्पविराम, पूर्ण विराम होता है वैसे ही एक लय से दूसरी लय की चाल को कविता में गति या यति कहते हैं। जैसे चौपाई 16 मात्रा की होती है तो दोहा 11-13 मात्रा का। संगीत में प्रवाहमान लय जहाँ बदलती है वह यति है।” यति में सामग्री बहुत कम देखने को मिलती है। तिहाइयाँ तब भी उपलब्ध हैं लेकिन डॉ. दाधीच ने इसमें परनों-बंदिशों आदि की रचना की है। उनके द्वारा रचित इसका लक्षण गीत जैसे अपने आप ही पूरी तस्वीर साफ कर रहा है कि – यति माल सुनो सजन/ गुणीजन को हिय हरण/ लय विराम यति होत/ पाँच भेद तीन चरण
उनके पुत्र तुष ने बताया “पिताजी आयु के आठवें दशक की यात्रा कर रहे हैं, अगस्त में वे 80 साल के हो जाएँगे। इसे ध्यान में रखकर इस पूरे साल हर महीने किसी न किसी शहर में इस तरह की कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। उसी कड़ी में आर्ट ऑफ़ लिविंग त्रिवेणी आश्रम, मरकल, पुणे में पाँच दिन निवासी कार्यशाला18 से 22 मई तक आयोजित की गई है। जिसमें पहली बार जूनियर बैच को भी स्थान दिया गया है।”
2 thoughts on “यति माल सुनो सजन …”
इतना सुंदर अवसर पु़़ गुरुजी के साथ आप लोग व्यतीत करने जा रहे, आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाईयाँ। मैं इस सुअवसर पर पारिवारिक गतिविधियों तथा व्यस्तता के कारण सम्मिलित नहीं हो पा रहा हूँ ,इसका मुझे अत्यंत खेद हो रहा है। मेरा पू़. गुरुजी तथा पू़ .दीदी को सादर प्रणाम तथा चरण स्पर्श 👏👏
This is such a wonderful article explaining the Yatis. I’ve gotten a clearer idea now. Thank you for writing this article!