दिल्ली के संगीत श्यामला में विख्यात गुरु चेतना जलान जी के मार्ग दर्शन में २१ मई २०१९ को गर्मी की ढलती शाम में, दो निष्ठावान युवा कलाकारों स्नेहा चक्रधर, भरतनाट्यम नृत्यांगना एवम सुदीप चक्रबर्ती, कत्थक नर्तक, की नृत्य प्रस्तुति हुई। यह शाम नवपल्लव के ‘हल्ला बोल’ आन्दोलन के तहत आयोजित की गयी। भारतीय समाज की विडम्बना है जहाँ शास्त्रीय कला का वास्तविक खज़ाना है, वहीं कलाकारों के गुज़ारे के प्रति कोई ख़ास रुझान नहीं है।
स्नेहा चक्रधर ने ‘राग बेहाग’ और आठ मात्रा की ‘आदि ताल’ में गुंथे हुए कृष्ण भक्ति के रंगों को अपनी भरतनाट्यम की प्रस्तुति से बिखेरा। वहीं शिव की आराधना तुलसीदास के ‘रुद्राष्टकम’ स्तोत्र से अर्पित की। ‘रागमलिका’, रागो का एक अनूठा संग्रह, और पांच मात्रा की ‘खंडा चापू’ ताल में निबद्ध आराधना से शिव के विविध स्वरूपों को भाव एवम मुद्रा से बखूबी दर्शाया।
कत्थक कलाकार सुदीप चक्रबर्ती ने अपनी प्रस्तुति ‘बिसोटेड’ अर्थात ‘प्यार में मदहोश’, में कत्थक के पारंपरिक नाचे जाने वाली चीज़ें जैसे ताल पर थिरकते तेज़ पाँव एवम चक्कर इत्यादि को प्रेम के भाव के साथ जोड़ा। शायरी से सुसज्जित नृत्य एंवम संगत कलाकारों के साथ समां बाँधा। उल्लेखनीय है इस प्रस्तुति के रचनाकार वह खुद हैं। उनकी अगली प्रस्तुति ‘तीन ताल’ थी।
यह दोनों नृत्य प्रस्तुतियां शास्त्रीय कला का अनूठा नमूना थी। दो अलग शास्त्रीय नृत्य के कलाकारों की बेजोड़ मेहनत एक ही शाम में देख कर रस की बरखा से वहां बैठे दर्शक सराबोर हो उठे।
नवपल्लव
संपन्न एवम विश्व विख्यात भारतीय शास्त्रीय नृत्य कला को इस तरह के आन्दोलन की आवश्यकता आखिर क्यूँ हुई? एक कलाकार तभी बनता है जब वह कला एवम उसकी प्ररम्परा के प्रति समर्पित होता है। समर्पण अध्यात्म है जिसका कोई मोल नहीं। पर इस से उतप्पन कला को सिर्फ मुफ्त देखना कलाकार का निरादर। स्पिक मैके फाउंडेशन से जुड़े श्री अशोक जैन जी एक मायूस नृत्यांगना से रूबर हुए। उसने बताया कि किस तरह से उसके घरवालो ने अपनी जमा पूँजी खर्च कर के उसे अंतरराष्ट्रीय नृत्य प्रस्तुति के लिए भेजा। क्यूंकि आयोजक का कहना था इंटरनेशनल फेस्टिवल में भाग लेने उसके करियर के लिए अनिवार्य है! यह स्तब्ध करने वाला वाकया था! वह अच्छी कलाकार थी फिर भी उसे गुमराह किया गया।
फेसबुक पर इसका प्रचार करने पर कई केस सामने आये और इसके विरोध में आवाजें मज़बूत होती गयी। कला एवम युवा कलाकारों के सम्मान हेतु नवपल्लव आन्दोलन की शुरुआत हुई। कई कलाकारों, गुरु जनों, रसिकजननों एवम कला के प्रचारको ने इसकी रहनुमाई की। गुरुजन ने जल्द ही पांच शहरों में युवा कलाकारों की नृत्य प्रस्तुति का आयोजन किया, जहाँ रसिकजनो ने भी बढ़-चढ़ कर इसमें भाग लिया जिस से आन्दोलन को बढ़ावा मिला। इस आन्दोलन में इसके आयोजकों की मेहनत भी उल्लेखनीय है, कलाकारों की एप्लीकेशन और कार्यक्रम को गुरुजन ने जांचा एवम सम्मान हेतु पारिश्रमिक भी निर्धारित किया।
कला की इस जर्जर अवस्था का बड़ा कारण नृत्य कला और उसके प्रसार के लिए अयोग्य अर्थव्यवस्था है। सरकार द्वारा नृत्य प्रस्तुति के बजट में अनिमियतता बरतना एवम आम जनता में कला के असल कीमत के प्रति उदासीनता इसके मुख्य कारण है।
यह आन्दोलन शास्त्रीय नृत्य के लिए और युवा कलाकारों की मायूस आर्थिक अवस्था के लिए एक आशा की किरण है। इसे पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए उचित आयोजकों से जुड़ने, सही प्रचार एवम नए कलाकारों के उपयुक्त काम को सामने लाना है। उम्मीद है ‘नवपल्लव’ और तरक्की करेगा और इससे सरकार एवम आम जनता कला के भविष्य के लिए जागृत भी होगी!