Download Our App

Follow us

Home » Dance » पं. रोहिणी भाटे: जिन्होनें महाराष्ट्र में नृत्य बीज बोया

पं. रोहिणी भाटे: जिन्होनें महाराष्ट्र में नृत्य बीज बोया

महाराष्ट्र में अभिजात शास्त्रीय संगीत, नाट्य गीत एवं लोकगीतों के परम्परा दीर्घकाल से चली आई है, किन्तु शास्त्रीय नृत्य इस भूमि में नहीं था। पंडिता रोहिणी भाटे प्रथम महिला थी जिन्होनें महाराष्ट्र में नृत्य का बीज बोया, उसे पौधा बनाया और सींच सींचकर वृहद वृक्ष के रूप में विकसित किया।

रोहिणीजी का जन्म बिहार प्रान्त के पटना नगर में १४ नवम्बर १९२४ को हुआ।  वे मध्य वित्त परिवार में पैदा हुई।  सन १९४६ में पुणे (महाराष्ट्र) सके फर्गुसन कॉलेज से आपने बी.ए. की उपाधि अर्जित की। उनकी पूर्व पीढ़ी के तज्ञ, विद्वान लोगों की सोहबत से अंग्रेजी, मराठी एवं संस्कृत भाषाओं के लिए मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। इसी से भाषाओँ से उन्हें गहरा लगाव रहा।  उनकी लिखी पुस्तकों से यह बात स्पष्ट हो जाती है। नृत्य के क्षेत्र में उन्होंने पहले गुरु पार्वतीकुमार से भरतनाट्यम नृत्यविधा का मार्गदर्शन प्राप्त किया। पश्चात उन्होंने कथक नृत्य की शिक्षा लेना आरम्भ किया।  जयपुर घराने के कत्थक गुरु सोहनलालजी प्रथम गुरु रहे।  मुंबई में श्री मन्नालाल एवं लखनऊ घराने के कथक  गुरु पं. लच्छू महाराज भी उनके मार्गदर्शक रहे। लखनऊ घराने के कथक आचार्य श्री मोहनराव कल्याणपुरकर भी आपके गुरु थे।  इस प्रकार कथक नृत्यविधा के जयपुर एवं लखनऊ दोनों घरानों के प्रवाहों में आपने प्रचुर अवगाहन किया।  साथ ही प्राचीन ग्रंथों का प्रगाढ़ अध्ययन करके भारतीय नृत्य तथा नाटकों के सन्दर्भ में प्राचीन दृष्टिकोण को देखा और अपनी नृत्य की तकनीक को पर्याप्त रूप से परिष्कृत किया।

यह बात सच है कि  जिन दिनों उन्होंने नृत्य की शिक्षा हेतु सन १९४७ में पुणे में ‘नृत्यभारती’ नामक कथक  नृत्य विद्यालय की स्थापना की, वह ज़माना बिलकुल अलग था।  आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये, तो उन दिनों समाज में नृत्य की समझ विक्सित नहीं हुई थी।  लोगों की सोच में नृत्य को लेकर मिली जुली भावनायें  थी।  ‘नृत्यभारती’ शीर्षक से खोली गई कत्थक नृत्य अकादमी को शुरू में मुश्किलों का सामना करना पड़ा।  उन्होनें पूरी ईमानदारी से कहा था – ” मैं जाने-अनजाने नृत्य के प्रवाह में कूद गई। उस एन वक्त पर यह ध्यान में नहीं आया कि पानी में कूदने से पहले तैरना आना आवश्यक है, यद्यपि इस तथ्य से मैं अवगत थी।  फिर क्या था? मैंने काफी गोते खाए, गोते खाते-खाते मैं जी-जान से हाथ-पैर चला रही थी…. और इसी प्रकार प्रयास करते हुए तैरना आ गया। यह समझने वाले मार्गदर्शक  भी मुझे उस समय मिल गए और मेरी नैया डूबी नहीं, अपितु चलाती रही।”

इस निवेदन में रोहिणीजी ने जो कहा है वह सौ फीसदी सच है। प्रारम्भ में समस्याएं अवश्य आईं, किन्तु गुरुजन एवं परमात्मा पर श्रद्धा थी, अपनी नृत्य शिक्षा में सम्बन्ध में आत्मविश्वास था, एवं सीखने में वे माहिर थी। निष्ठा व लगन से नृत्य शिक्षा में वे लगी रहीं और आज ७०-७२ वर्षों के पश्चात भी ‘नृत्यभारती’ का प्रवाह अक्षुण्ण रूप से प्रवाहमान है।

‘नृत्यभारती’ केवल नृत्य विद्यालय नहीं है, सब शिष्य-जनों के लिए वह ‘आदर्श विश्वविद्यालय’ है। पं. रोहिणीजी ने नृत्य के अतिरिक्त शास्त्रीय गायन की भी शिक्षा प्राप्त की, इस विषय में उनके गुरु थे पं. वसंतराव देशपांडे। बहुत लोगों के या विदित नहीं कि पुणे आकाशवाणी केंद्र के सुगम संगीत विभाग की वे एक अच्छी गायिका थी। इस विधा के लिए उन्होंने श्री केशवराव भोलेजी से मार्गदर्शन प्राप्त किया था। उनका साहित्य के क्षेत्र को दिया गया योगदान सर्वविदित है। ‘माझी नृत्य-साधना’ शीर्षक से उन्होंने अपना आत्मचरित्र लिखा, जो बहुत प्रशंसा का पात्र बना। ख्यातकीर्त विदेशी नर्तिका ईसाडोरा डंकन की पुस्तक का उन्होंने मराठी में ‘मी ईसाडोरा’ शीर्षक से अनुवाद किया। यह पुस्तक भी मशहूर हुई. संगीत एवं नृत्य से सम्बद्ध ग्रन्थ – जो संस्कृत में है – ‘अभिनय दर्पण’ उसका सम्पादित संस्करण ‘कत्थक दर्पण दीपिका’ नाम से आपने लिखा।  इस पुस्तक से नृत्य क्षेत्र लाभान्वित हुआ। ‘लहजा’, ‘दर्पणी पाहता’ ये आपकी अन्य पुस्तकें है। इसके अतिरिक्त पारम्पारिक नृत्यरचनाओं के साथ साथ पं. भाटे जी ने कुछ समूह-नृत्यरचनाओं का भी सृजन किया, जैसे कि ‘उष: सूक्त’, ‘उदगार’, ‘समय’, ‘कविताली’, ‘पावस’, ‘मौन’ और तन्मात्र’। इनमें से ‘तन्मात्र’ शीर्षक की रचना प्रकृति के पांच तत्वों के माध्यम से व्यक्त होनेवाली अनूठी, विश्वजयी रचना है और आज २५ वर्षों के बाद भी कालजयी रही जिसका मंचन होने जा रहा है।

पं. रोहिणी भाटे ने पूर्व काल में अतीव परिश्रम किये, उसी साधना के फलस्वरूप उन्हें कई पुरस्कार मिलें, जिनमें प्रमुख है महाराष्ट्र शासन पुरस्कार(१९७७), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार(१९७९), महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार(१९९०), कालिदास सम्मान(२००१), संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप(२००६) एवं संगीत नाटक अकादमी रत्न पुरस्कार( २००७)।

इसके अतिरिक्त सन १९५२ में आप भारतीय सांस्कृतिक प्रतिनिधी मंडल की सदस्य के रूप में चीन गयी। सन १९८८ से २००१ तक पुणे विश्वविद्यालय के ललित कला केंद्र में अतिथि प्राध्यापक एवं गुरु के रूप में रोहिणीजी कार्यरत रहीं। पुणे के डेक्कन कॉलेज ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी डॉ. रोहिणी भाटे अपने शिष्यजन के माध्यम से परम्परा को जीवित रखने में समर्थ बनी हैं। उनके प्रमुख शिष्याओं में श्रीमती शारदिनी गोले, श्रीमती नीलिमा अध्ये, श्रीमती शमा भाटे जो उनकी स्नुषा भी है, अन्य भी कई शिष्याऐं उनके कार्य को अग्रेसरित कर रही है।

आज १४ नवम्बर, जो की उनके सामान ही पं. जवाहरलाल नेहरू का भी जन्मदिन है – ‘बाल दिवस’ के रूप में , मनाया जाता है, संभवत: इसी कारण आयु के ८३ वर्ष तक नृत्यांगना चिरतरुण रही। १० अक्टूबर, २००८ को पंडिता रोहिणी भाटे पंचतत्व में लीन हुई।


लेखिका डॉ. सुधा पटवर्धन – विष्णु दिगंबर पलुस्कर संगीत महाविद्यालय की प्राचार्य एवं ग्वालियर घराने की गायिका डॉ. सुधा पटवर्धन संगीत एवं संस्कृत में स्नातकोत्तर एवं डॉक्टरेट (संगीत) है। वे अखिल भारतीय गांधर्व महाविद्यालय मंडल की सचिव है तथा मंडल की मासिक पत्रिका ‘संगीत कला विहार’ एवं हाथरस प्रकाशन की मासिक पत्रिका ‘संगीत’ की सम्पादिका भी है। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी है जिनमें ‘संगीत राग विज्ञान’  (भाग १ से ५), ‘संगीत शिक्षा’, ‘नाद  चिंतन’, ‘स्मरण संगीत’ प्रमुख है।

Leave a Comment

7k network
Breath and Rahiman

Interesting And Unique Dance Productions

Two unusual and unique dance productions “Breath” and “Rahiman” were presented at the Prabodhankar Thackeray auditorium last week by talented

error: Content is protected !!