Download Our App

Follow us

Home » Dance » सितारों की सितारा “कथक क्वीन सितारा देवी”

सितारों की सितारा “कथक क्वीन सितारा देवी”

८ नवम्बर मेरी बेटी का जन्मदिन… वह भी कथक नृत्य सीखती है। मुझे मेरी माँ ने बहुत ८ नवम्बर मेरी बेटी का जन्मदिन… वह भी कथक नृत्य सीखती है। मुझे मेरी माँ ने बहुत छोटी उम्र में कथक नृत्य सीखने के लिए क्लास लगाया था। माँ को बचपन से नृत्य में बहुत रूचि थी, लेकिन बेटी अगर नृत्य सीखेगी तो “लोग क्या कहेंगे ?” इसी वजह पिताजी ने इस रुचि को प्रोत्साहन नहीं दिया। आज मेरी माँ, उसका अधूरा सपना मुझमें पूरा होते देख रही है। मैं खुद एक कत्थक नर्तिका हूँ और मेरी संस्था में आज कई विद्यार्थिनी कत्थक सीख रही है।

८ नवम्बर… मैं मेरी बेटी को कुछ अलग भेंट देना चाहती हूँ। ऐसी भेंट जो प्रेरणादायक हो, सदा मील का पत्थर बना रहे। ८ नवम्बर कथकक्वीन सीतारादेवीजी का भी जन्मदिन। वो नटेश्वर की पुजारीन थी जिसने जीवन के ६० साल अपने नृत्य को समर्पित किये। सीताराजी के समर्पण को विनम्र अभिवादन कर मेरा लिखा हुआ हर शब्द उनके प्रति अर्पण करूंगी।  इससे अच्छा उपहार और क्या हो सकता है। मैं इसी शख्सियत के जीवन के अनमोल पलों को लिखकर बेटी के हाथों में दूंगी। ८ नवम्बर १९२० में धरा पर उतरे सिताराजी को आज की ८ नवम्बर २००३ में जन्मी मेरी बेटी के हाथों देकर कहूंगी कि इस सितारे को आनेवाली कई पीढीयों पर न्योछावर कर देना ताकि यह सितारा आकाश में नहीं बल्कि जमीं पर हर जगह दिखाई दे।

कुछ शख्सियतें अपनी जिंदगी को मिसाल के तौर पर रख देती है… जो बंजर जिंदगी में अपने प्रभाव से फूल खिला देती है।

आज भी याद है वो दिन…पुना में सिताराजी का वर्कशॉप होने वाला था। पुना के प्रसिद्ध कथक नर्तक पं. नंदकिशोर कपोतेजी ने इस कथक महायज्ञ का आयोजन किया था। पुना के जानेमाने कथकनर्तक, उपस्थित अतिथी तथा नृत्यप्रेमी और विद्यार्थियों के बीच, एक सितारा आखमान से उतरा… मानो परिपूर्ण कथक की छवी सामने खड़ी थी जिसका अंदाज ही निराला था। उम्र देखी जाए तो नानी के बराबर, पर नृत्य के अंदाज ने उनकी उम्र को आसानी से छिपा डाला। वो थी…. कथकक्वीन सितारादेवी !

अचंभित होकर में बस देखती ही रह गई। कुछ तोड़े, टुकड़े, परन, खुद पढंत कर नाचने के बाद ‘दरोगा जी’ ऐसा ही कुछ गाना था, जिस पर उन्होंने नृत्य किया। यह पूरा अनुभव ही रोमांचकारी था। मैंने पहली बार सितारा दीदी को देखा था। वर्कशॉप के उन चार दिनों में  सितारा दीदी को जितना करीब से जान सकूँ, महसूस कर सकूँ उतना मैंने किया।

उसके बाद उनकी नृत्यप्रस्तुती देखने का फिर से अवसर मिला। पुना की आदरणीय श्रेष्ठ नृत्यांगना पं. प्रभा मराठेजी ने उन्हें बुलाया था।  उम्र कुछ ९० के बराबर… लेकिन वही श्रृंगार, वही ढंग, वही माथे की बिंदी और वही आँखे। कमी थी तो बस शरीर के उत्साह की, नहीं तो उसमें छिपा उनका मन पूरे स्टेज पर नाच उठता।

क्या थी वो ??? एक तूफान ही तो थी।

सितारादेवीजी का जन्म ८ नवम्बर १९२० में कलकत्ता में हुआ था। उनका जन्म धनतेरस के दिन का, इसलिए उनका नाम धनलक्ष्मी रखा गया। वह पं.सुखदेव महाराजजी की बेटी थी… पं.सुखदेव महाराजजी की तीनों बेटियों – अलकनंदा, तारा और सितारा ने नृत्य सीखा था। पं. सुखदेव महाराजजी खुद कला के पुजारी थे। नृत्यकला के साथ वह गायन से भी जुड़े थे। सिताराजी ने अपने पिता से नृत्यशिक्षा ली। साथ ही पं.शंभू महाराज और पं.अच्छन महाराजजी से भी शिक्षा प्राप्त की। बनारस से उन्हें मुंबई आना पड़ा। मुंबई में सितारा जी पहला सार्वजनिक कार्यक्रम, दस-ग्यारह साल की आयु में मशहूर जहांगीर हॉल में हुआ और उसके बाद यह सिलसिला चलता ही रहा।

सितारा जी ने सन १९३० से ४० में फिल्मों में काम किया। १९४० के दशक में वो फिल्मों की नायिका बनी। उसके पश्चात फिल्मों के लिए गाने गाये, कई गानों का नृत्यनिर्देशन भी किया। धनलक्ष्मी से सितारा….  सितारा से सितारादेवी… और कथकक्वीन सितारा बन गयी।

कथकक्वीन सितारादेवी को नृत्य में योगदान के लिए सं १९६९ में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, १९७५ में पद्मश्री  और १९९४ में कालिदास पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने नृत्य प्रदर्शनों से उन्होंने देश विदेशों के दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। सिताराजी कत्थक के साथ भरतनाट्यम तथा कई भारतीय नृत्यशैलियों और लोकनृत्यों में पारंगत थी।

सितारा जी के कथक में बनारख और लखनऊ घराने के तत्वों का संमिश्रण दिखाई देता है। ये वो ज़माना था जब पूरी पूरी रात कथक की महफ़िल जमी रहती थी। अपनी ९५ की उम्र तक यह कलाकार अपनी कला से मुक्त नहीं हो पाई। २६ नवम्बर २०१४ को देश की मशहूर नृत्यांगना सितारादेवीजीं का जसलोक अस्पताल में निधन हो गया।

सितारा टूट गया लेकिन समाज में कला की रोशनी फैलाकर गया। अब आकाश के कई सितारों में यह एक है, जो हमें देख रहा है। धरोहर की धारा कहीं लुप्त तो नहीं हो रही? घुंगरू बज रहे हैं ना?

[adrotate group=”9″]

कला का ग्रहण, कला के साथ ही जीवन, कला को ही समर्पण हो, तभी ऐसा सितारा जन्म लेता है, वरना रोशन करने वाले ‘दिए’ बहुत है समाज में!
लिखते लिखते आंसुओं ने न जाने कब कागज़ पर जगह ले ली। मैं सितारा जी की यादों में पूरी खो गयी। अब सिताराजी के यही पन्ने मैं मेरी बेटी को भेंट करूंगी। जन्मदिन की भेंट!

सितारों की सितारा…. कथक क्वीन सितारा देवी


लेखिका : नीलिमा हिरवे (पुणे) कथक नृत्यांगना, गुरु एवं कोरियोग्राफर है। पं.शमा भाटे एवं पं.सुरेश तलवलकर की शिष्या एवं मराठी भाषा, भूगोल तथा इंडोलोजी में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त नीलिमा नृत्य अलंकार एवं तबला विशारद भी है। वे पुणे स्थित नीलिमा प्रोडक्शंस की निदेशक है।

 

Also read >> Remembering Kathak Queen Sitara Devi

7k network
Breath and Rahiman

Interesting And Unique Dance Productions

Two unusual and unique dance productions “Breath” and “Rahiman” were presented at the Prabodhankar Thackeray auditorium last week by talented

error: Content is protected !!