तानसेन समारोह 2021- सुबह के रागों की गंभीरता और सुरों की मधुरता

Picture of classicalclaps

classicalclaps

SHARE:

सुबह के राग अपने आप में गंभीरता लिए रहते है और यह ऐसा समय होता है जब सुर इतने पवित्र लगते है कि ध्यान अपने आप लगने लगता है। तानसेन समारोह में सुबह के कार्यक्रमों में इतनी विविधता देखने को मिली जिसमें गायन वादन की श्रेष्ठ प्रस्तुतियां शामिल थी और दर्शक थे कि ध्यानस्थ होकर कार्यक्रम को सुन रहे थे और मगन हो रहे थे।

ठीक दस बजे कार्यक्रम आरंभ हुआ और तब लग रहा था कि आगे की दो पंक्तियां भी भर पाएंगी की नहीं परंतु जैसे ही राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्व विद्यालय के आचार्यों व विद्यार्थियों ने ध्रुपद गायन की शुरुआत की माहौल में पवित्रता घुल गई और कुछ ही समय में पांडाल भरने लगा। यह सुरों का ही आकर्षण था कि दर्शक खींचे चले आए। राग अहीर भैरव में विलंबित ध्रुपद रचना के बोल थे एक दंत लंबोदर मुसिक वाहन सिद्ध सदन गिरिजा सुत गणेश। इसके बाद राग बैरागी और सूल ताल में  ध्रुपद  डम डम डमरू बाजे की प्रस्तुति दी। पखावज पर श्री जयंत गायकवाड़ और तबला पर श्री विनय राठौर ने संगत की।

मुंबई से प्रस्तुति देने आए विंचुरकर दंपती तेजस औौर मिताली ने राग विभास से कार्यक्रम का आरंभ किया । तेजस बांसुरी बजाते है और मिताली तबले पर संगत करती है दोनो मूलत: इंदौर से है और कुछ समय पूर्व ही मुंबई गए है वहां पर भी अपना नाम किया है। तेजस ने हाल ही में अपने पिता को खोया है और उन्होने तानसेन की अपनी प्रस्तुति पिता को समर्पित की। रुपक ताल में प्रस्तुति के दौरान राग विभास का संपूर्ण वर्णन उनके वादन में नजर आया।

इसके पश्चात द्रुत तीन ताल में प्रस्तुति दी। तेजस की बांसुरी की फूंक दमदार है वही मिताली का हाथ तबले पर साफ है बोल एकदम साफ निकलते है उनके हाथ से।   पहाड़ी राग में एक मधुर धुन से कार्यक्रम का समापन किया।

इंदौर से पधारे कलाकार मनोज सराफ ने ध्रुपद गायन में राग चारुकशी की प्रस्तुति दी।  धमार में निबद्ध पहली बंदिश के बोल थे आज कैसी धूम मची बृज में। इसके बाद सूलताल में दूसरी बंदिश पेश की जिसके बोल थे बांके बनबारी। आपने रागदारी की  बारीकियों के साथ दोनों ही बंदिशों को पूरे कौशल से गाया। उनके साथ श्री संजय पंत आगले ने पखावज पर संगत की।

भीमसेनी शैली की याद दिला दी संजय गरुड़ ने

पुणे के गायक संजय गरुड़ ने शुद्ध सारंग की प्रस्तुति दी। संजय जी की गायकी भीमसेनी शैली गायन की याद दिलाती है। सुर लगाने का तरीका और खासतौर पर जब वे ताने लेते है तब एक एक सुर निखर कर सामने दिखने लगता है। दोपहर के राग  शुद्ध सारंग में श्री संजय गरुड़ ने जब एक ताल में विलंबित बड़ा ख्याल  हे मानत नाहिं पिया का जब अपनी खुली और खनकदार आवाज में सुमधुर गायन किया तो गान मनीषी तानसेन की धरती घरानेदार गायकी जीवंत हो गई। पुणे से पधारे श्री गरुड़ के गायन में मूर्धन्य गायक स्व भीमसेन जोशी और किराना घराने की बारीकियाँ साफ झलक रहीं थीं। उनके गायन से श्रोता पुरानी यादों में खो गए। उन्होंने सुरीली तान और सुंदर अलापचारी के साथ तीन ताल में निबद्ध छोटा ख्याल  अब मोरी बात मान ले  प्रस्तुत कर संगीत रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। गरुड़ जी ने किरवानी में सजनवा तुम क्या जानो पीर  ठुमरी सुनाकर रसिकों को विरह रस में डुबोया तो भीमसेन जोशी का प्रसिद्ध भजन  बाजे मुरलिया बाजे सुनाकर कृष्ण और गोपियों के निश्छल प्रेम का अहसास कराया। इसी के साथ उन्होंने अपने गायन को विराम दिया। उनके गायन में श्री अनिल मोघे ने तबले पर और श्री जितेन्द्र शर्मा ने हारमोनियम पर संगत की।

भारत भूषण गोस्वामी | चित्र साभार: अनुराग तागड़े

तानसेन समारोह में सोमवार की प्रात:कालीन सभा का समापन सुविख्यात सारंगी वादक पं भारत भूषण गोस्वामी के सारंगी वादन से हुआ। सारंगी वादन से झरी मिठास से रसिक सराबोर हो गए। नई दिल्ली से पधारे पं भारत भूषण जी ने राग जौनपुरी में सारंगी वादन किया। यह राग अत्यंत मधुर और लोकप्रिय राग है। पंडित जी ने इस राग में विलंबित गत एक ताल में और द्रुत लय तीन ताल में प्रस्तुत की। इसके बाद मिश्र भैरवी में बनारस घराने की ठुमरी व दादरा की मधुर धुन प्रस्तुत की। इनके साथ तबले पर उस्ताद सलीम अल्लाहवाले ने संगत की।

दर्शक संपूर्ण कार्यक्रम में बने रहे

Advt with us..Header ad 1680x216

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *