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क्या शास्त्रीय संगीतकार ‘COVID19 पश्चात’ युग के लिए तैयार हैं?

केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के संगीतकारों का समुदाय अब COVID19 युग के बाद अपनी स्थिति और विपणन रणनीतियों पर पुनर्विचार और पुनर्बलित करने के लिए बाध्य है।

जीवन के इस तथ्य को भारतीय शास्त्रीय संगीतकारों को स्वीकार करना होगा कि उनकी तुलना में अंतर्राष्ट्रीय संगीतकारों की लिए डिजिटल दुनिया के बारे में जागरूकता अति महत्त्वपूर्ण रही है।  और इसके कई कारण भी है। तकनीकी दृष्टी से भारत ने हाल ही में डिजिटल दुनिया की पहुँच और बैंडविड्थ क्षमताओं के लिए व्यापक स्टार पर कार्य किये है।  इस जेतु घरेलु और अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार कंपनियों ने ना केवल हर भारतीय को इंटरनेट नेटवर्क उपलब्ध कराया बल्कि फ्रीबी के रूप में इंटरनेट बनविड्थ भी प्रदान की। इस क्रांति का मजबूत और व्यावसायिक पक्ष है कि ‘आज इंटरनेट द्वारा हम सभी जुड़े हुए है’ और ज्ञान तथा सूचना सभी की सामान पहुँच में है।

पूरी डिजिटल दुनिया का दूसरा महत्त्वपूर्ण पहलू है, हर स्थान पर मूर्त और अमूर्त उत्पादों और सेवाओं की “अति आपूर्ति” (over supply) और यही डिजिटल बाज़ार को सरल और साथ ही साथ क्लिष्ट भी बनाता है।  इसीलिये संगीतकारों को समय रहते इस दुनिया की बारीकियों को समझने की जरुरत है। हर संगीतकार एक सम्पूर्ण संगीत शैली का प्रतिनिधित्व करता / करती है, इसलिए उन्हें अपने डिजिटल प्रयासों को प्रभावी बनाना होगा, और दूसरा ‘पहुँच’ (access) ।  सामजिक मीडिया प्लेटफॉर्मों पर उनकी दृश्यता (विजिबिलिटी) और कंटेंट के सम्बन्ध में सतर्क रहना होगा।  यह थोड़ा कठोर लग सकता है लेकिन निश्चित रूप से भविष्य में मदद करेगा।

अगर भारतीय संगीत की बात करें, अंतराष्ट्रीय संगीत परिदृश्य के विपरीत भारतीय संगीत में कई शैलियां है और हर शैली में कई उप-शैलियां शामिल है।और जनसँख्या की दृष्टी से विश्व का दूसरा बड़ा देश होने के कारण यहाँ प्रचुर संख्या में प्रतिभा भी उपलब्ध है।

एक अन्य पहलू यह है की ऑनलाइन मीडिया हर शैली में हर प्रतिभा के लिए सामान रूप से उपलब्ध है, चाहे प्रतिभा की गुणवत्ता किसी भी स्तर की हो।  इसके अलावा, सोशल मीडिया लाइव कॉन्सर्ट में एक कलाकार को लागत भी नहीं लगती, इसलिए हर कलाकार इस सुविधा का अधिकाधिक उपयोग करने का प्रयत्न करता है।  क्योंकि यहाँ निशुल्क लोकप्रियता का साधन है।  परन्तु इससे एक अच्छी प्रतिभा के भीड़ में खो जाने की भयावह स्थिति बन सकती है, जो एक  समझना बहुत जरुरी है।

ऐसी स्थिति के लिए आखिर उपाय क्या है? संगीतकारों के फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया ने हाल ही में स्ट्रीमिंग संगीत पर एक अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की और इस विषय पर विचार-विमर्श किया।  इस संगोष्ठी में भारत के कॉपीराइट बोर्ड, IPRS, ISRA, PPL, IMI, संगीतकारों के अंतराष्ट्रीय महासंघ, अमेरिकन फेडरेशन ऑफ़ म्यूजिशियन, कैनेडियन फेडरेशन ऑफ़ म्यूजिशियन और डेनमार्क, स्वीडन, पोलैंड, जर्मनी, यूके, स्विट्ज़रलैंड तथा कई यूरोपीय संगीत संघों ने भाग लिया।  इस संगोष्ठी में कुछ प्रसिद्ध म्यूजिक स्ट्रीमिंग कंपनियों जैसे टाइम म्यूजिक, हंगामा आदि ने भी चर्चा की और एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया कि विशेष (niche)  संगीत शैलियों के संगीतकार के लिए सफलता की कुंजी है उसका “सीधे और सीधे अपने प्रशंसकों से जुड़े रहना” । पश्चिमी दुनिया के कई सफल अंतराष्ट्रीय संगीतकारों ने  प्रभावी रूप से अपनाया है।

आने वाले वर्षों में भारतीय संगीत और संगीतकारों को वास्तव में संगठित होने, ज्ञान प्राप्त करने और टेक्नोलॉजी को अपनाने की आवश्यकता है। डिजिटल मंच एक कलाकार के लिए अभिनव रेवेन्यू मॉडल का निर्माण की चुनौती भी होगी और सफलता की कुंजी भी।

इस चुनौती से लड़ने के लिए म्यूजिशियन फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (MFI) ग्लोबल कम्युनिटी ऑफ़ इंडिया म्यूजिक (GCIM) को पुनर्जीवित कर रहा है। GCIM की घोषणा सन 2015 में पं. शिवकुमार शर्मा, बेगम परवीन सुल्ताना, पं. हरिप्रसाद चौरसिया, लुइज़ बैंक, पं. विजय घाटे तथा कई और कलाकारों ने मुंबई के षणमुखानंद सभागृह में एक भव्य समारोह में की थी।

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एम् एफ आई सभी कलाकारों को जुड़ने लिए आमंत्रित करता है और साथ ही अपील करता है की कम से कम 20 संगीत प्रेमी सदस्यों को इससे जोड़े।  कृपया सिर्फ 3 मिनिट का समय दें, यहाँ क्लिक करें, विवरण भरें और सबमिट दबाएं।

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